Written by , (शिक्षा- बैचलर ऑफ जर्नलिज्म एंड मीडिया कम्युनिकेशन)

ट्यूबरकुलोसिस को विश्व स्तर पर एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या माना गया है। दुनिया की लगभग एक तिहाई आबादी, यानी लगभग दो अरब लोग टीबी रोग से संक्रमित हैं। अनुमान है कि हर साल लगभग 90 लाख लोग इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। 2025 तक करीब 20 करोड़ लोगों के इस बीमारी की चपेट में आने की आशंका है (1)। यही वजह है कि स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम टीबी से संबंधित हर प्रकार की जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं। हम टीबी को होने से रोकने या फिर जिन्हें टीबी हैं, उनमें टीबी के लक्षण कम करने में मदद करने वाले कुछ घरेलू उपचार बता रहे हैं। वहीं, इस गंभीर बीमारी के संकेत मिलते ही तुरंत इलाज के लिए डॉक्टर से संपर्क किया जाना जरूरी है।

चलिए, सबसे पहले जान लेते हैं टीबी रोग कहते किसे हैं।

टीबी क्या है? – What is TB in Hindi

ट्यूबरकुलोसिस जिसे आम भाषा में टीबी के नाम से जाना जाता है, एक गंभीर बीमारी है। यह माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) नामक बैक्टीरिया की वजह से होती है। यह बैक्टीरिया अधिकतर फेफड़ों को निशाना बनाता है, लेकिन फेफड़े के साथ ही शरीर के अन्य अंग को भी यह नुकसान पहुंचा सकता है। यह हवा के माध्यम से फैलने वाली बीमारी है। जब टीबी रोग से ग्रसित व्यक्ति छींकता या खांसता है, तो माइकोबैक्टीरियम हवा के माध्यम से दूसरे व्यक्ति को अपना शिकार बना लेते हैं। अगर किसी का इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है, तो वो आसानी से टीबी रोग की चपेट में आ सकता है। अगर सही तरीके से इलाज न किया जाए, तो टीबी प्राणघातक भी साबित हो सकती है। टीबी बैक्टीरिया से संक्रमित लोगों को दवा देकर इसे बढ़ने से रोका जा सकता है (2)

चलिए, अब एक नजर टीबी के प्रकार पर डाल लेते हैं।

टीबी के प्रकार – Types of TB in Hindi

टीबी रोग एक गंभीर बीमारी है, यह तो आप जानते ही हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि टीबी के प्रकार भी होते हैं। दरअसल, टीबी को दो प्रकार में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार है (3) (4):

1. लेटेंट टीबी (Latent TB): इस प्रकार के टीबी के दौरान शरीर में ट्यूबरकुलोसिस का बैक्टीरिया रहता है, लेकिन व्यक्ति को बीमार नहीं करता। ऐसा इसलिए, क्योंकि प्रतिरक्षा प्रणाली कीटाणु को फैलने से रोकती है। इस प्रकार के टीबी से ग्रसित व्यक्ति में यह रोग नहीं फैलता है और कई मामलों में तो टीबी के लक्षण भी नजर नहीं आते हैं। ऐसे व्यक्ति संक्रामक नहीं होते, बल्कि टीबी ग्रसित संक्रामक (Infectious) लोगों से संक्रमित (Infected) होते हैं। ऐसे लोगों को एक्टिव टीबी होने का खतरा होता है।

2. एक्टिव टीबी (Active TB) : जब प्रतिरक्षा प्रणाली टीबी के बैक्टीरिया को पनपने से रोक नहीं पाता, तब टीबी बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं। जब टीबी के जीवाणु सक्रिय होते हैं तो यह शरीर में गुणा यानी मल्टीप्लाई होने लगते हैं। इसे टीबी रोग व एक्टीव टीबी कहा जाता है। टीबी होने वाले लोग बीमार होते हैं। ये बैक्टीरिया एक से दूसरे व्यक्ति में फैलाते हैं, जिसके साथ संक्रमित व्यक्ति समय बिताते हैं।

टीबी के प्रकार के साथ ही टीबी की साइट्स जानना भी जरूरी है। टीबी साइट्स यानी शरीर का वो हिस्सा जिसे टीबी प्रभावित करता है। टीबी साइट्स को तीन हिस्सों में बांटा गया है। नीचे हम विस्तार से इस बारे में बता रहे हैं।

कहां-कहां होता है टीबी रोग – Sites of TB Disease

आमतौर पर टीबी रोग फेफड़ों यानी लंग्स से संबंधित हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि टीबी रोग शरीर के अन्य हिस्सों को प्रभावित नहीं करता है। क्षय रोग के बैक्टीरिया की वजह से रीढ़ की हड्डी में टीबी, पेट का टीबी और बोन टीबी भी हो सकता है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक टीबी रोग कहां-कहां होता है यह हम विस्तार से नीचे बता रहे हैं (5):

  1. पल्मोनरी (Pulmonary) : टीबी रोग फेफड़ों को सबसे अधिक प्रभावित करता है और इसे पल्मोनरी टीबी कहा जाता है। पल्मोनरी टीबी के मरीजों में आमतौर पर खांसी होती है। फेफड़े से संबंधित क्षय रोग से प्रभावित लोगों का चेस्ट एक्स-रे असामान्य होने के साथ ही संक्रामक हो सकता है। हालांकि, टीबी के सबसे अधिक मामले फेफड़े में ही होते हैं, लेकिन यह एक अंग से दूसरे अंग में फैल सकता है।
  2. एक्सट्रापल्मोनरी (Extrapulmonary) : एक्सट्रापल्मोनरी टीबी फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य हिस्सों में होता है। इसमें पेट का टीबी, गले, इम्यून सिस्टम ग्लैंड्स (Lymph nodes), मस्तिष्क, किडनी और हड्डी का टीबी शामिल है। एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों में एक्सट्रापल्मोनरी टीबी की समस्या अक्सर पल्मोनरी टीबी के साथ ही होती है। अगर एक्सट्रापल्मोनरी टीबी मुंह या गले में हो जाए, तो यह संक्रामक हो सकता है। साथ ही अगर एक्स्ट्रापल्मोनरी रोग के दौरान या उसकी वजह से फोड़ा व घाव हो जाए, जिससे पानी निकलता हो, तो यह संक्रामक हो सकता है।
  3. मिलियरी (Miliary) टीबी रोग : मिलियरी टीबी रोग तब होता है, जब ट्यूबरकुलोसिस के बैक्टीरिया ट्यूबरकल बेसिली (Tubercle bacilli) रक्त वाहिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं। फिर ये जीवाणु रक्त प्रवाह के जरिए पूरे शरीर में फैल जाते हैं। यह स्थिति दुलर्भ और बेहद गंभीर होती है। ऐसा सबसे अधिक नवजात और 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में होता है। इस टीबी का पता किसी भी अंग से लगाया जा सकता है, क्योंकि बैक्टीरिया पूरे शरीर में फैल गए होते हैं। समय रहते उपचार न कराने पर यह प्राणघातक भी हो सकता है।
  4. केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) : यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी में टीबी होने के बजाय इनके आसपास के ऊतक यानी टश्यू में टीबी होता है। इसे ट्यूबरकोलोसिस मेनिन्जाइटिस (Tuberculous meningitis) कहा जाता है।

लेख के अगले हिस्से में हम टीबी के कारण के बारे में बता रहे हैं।

टीबी के कारण – Causes of Tuberculosis in Hindi

टीबी के कारण कुछ इस प्रकार हैं (6) (7):

  • माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (एमटीबी) बैक्टीरिया के कारण ऐसा हो सकता है।
  • जैसा कि हम ऊपर बता ही चुके हैं कि टीबी एक संक्रामक रोग है, इसलिए यह हवा के माध्यम से भी फैल सकता है।
  • टीबी ग्रसित व्यक्ति का संक्रमित रूमाल या तौलिया इस्तेमाल करने से भी यह हो सकता है।
  •  एचआईवी की अवस्था में भी टीबी हो सकता है।

आगे हम टीबी रोग के लक्षण के बारे में बता रहे हैं। इसके बाद टीबी का घरेलू इलाज के बारे में बताएंगे, जो टीबी के लक्षण को कम करने में मदद कर सकता है।

टीबी के लक्षण – TB Symptoms in Hindi

टीबी अधिकतर फेफड़ों में ही होता है, जिसके कई तरह के लक्षण सामने आते हैं। नीचे हम टीबी के आम लक्षणों के बारे में बता रहे हैं (2):

  • तीन हफ्ते या उससे ज्यादा समय तक बुरी तरह से खांसी होना।
  •  भूख में कमी आना।
  • खांसते वक्त बलगम और खून का निकलना।
  • कमजोरी या थकान महसूस होना।
  • बुखार आना।
  • रात को पसीना आना।
  • सीने में दर्द होना।
  • ठंड लगना।

वहीं, बोन टीबी के लक्षण में जोड़ों में दर्द, कमर दर्द व रीढ़ की हड्डी में दर्द शामिल हैं। चलिए, अब एक नजर टीबी के जोखिम कारकों पर भी डाल लेते हैं।

टीबी के जोखिम कारक – Risk Factors of TB in Hindi

वैसे तो टीबी के इलाज के लिए डॉक्टर से ही संपर्क करना चाहिए, लेकिन इसके लक्षण कम करने के लिए टीबी का घरेलू इलाज भी किया जा सकता है। इसके बारे में हम लेख में आगे विस्तार से बताएंगे। वैसे आमतौर पर टीबी रोग की चपेट में आने के ज्यादा जोखिम को दो श्रेणियों में बांटा जाता है (8) (9):

1. ऐसे व्यक्ति, जो हाल ही में टीबी के बैक्टीरिया से संक्रमित हुए हों :

  • संक्रामक (Infectious) टीबी रोग वाले व्यक्ति के संपर्क में आने वाले।
  • टीबी की उच्च दर वाले देश से लौटने वाले।
  • 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे।
  • बैक्टीरिया के चपेट में आसानी से आने वाले लोग।
  • बेघर व्यक्ति, इंजेक्शन वाले ड्रग का इस्तेमाल करने वाला और एचआईवी संक्रमण वाले व्यक्ति।
  • ऐसे लोग, जो टीबी प्रभावित लोगों के साथ रहते हों।
  • ऐसे व्यक्ति, जो अस्पतालों या बेघर आश्रयों, सुधारात्मक सुविधाओं व नर्सिंग होम में टीबी के मरीज के साथ काम करते हों।

2. ऐसी बीमारी व शारीरिक समस्या, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करती हो

शिशुओं और छोटे बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली अक्सर कमजोर होती है। इसके अलावा, किसी बीमारी से लड़ रहे लोगों में भी प्रतिरक्षा प्रणाली की कमी देखी जाती है, जो कुछ इस प्रकार हैं:

  •  एचआईवी संक्रमण (एड्स का कारण बनने वाला वायरस)।
  •  मादक द्रव्यों का सेवन करने वाले।
  • सिलिकोसिस (फेफड़े से संबंधित रोग)।
  • डायबिटीज के मरीज।
  • किडनी की गंभीर बीमारी।
  • शरीर का कम वजन होना।
  • अंग प्रत्यारोपण।
  • सिर और गर्दन का कैंसर।
  • कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स जैसे चिकित्सा उपचार।
  • अर्थराइटिस का कोई खास उपचार।

इसके अलावा धूम्रपान और अल्कोहल के सेवन से भी टीबी होने का खतरा हो सकता है। एक शोध के मुताबिक, धूम्रपान भी टीबी संक्रमण और बीमारी का जोखिम कारक है। घर के अंदर वायु प्रदूषण यानी खाना पकाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ियों से निकलने वाला घुआं और कुषोषण को भी टीबी का जोखिम कारक माना गया है।

टीबी के इलाज के लिए वैसे तो डॉक्टर से ही संपर्क करना चाहिए, लेकिन इसके लक्षण कम करने के लिए टीबी का घरेलू इलाज भी किया जा सकता है। आइए, अब इस बारे में ही जानते हैं।

टीबी के लिए कुछ घरेलू उपाय – Home Remedies for TB in Hindi

1. विटामिन-डी

सामग्री:

  • 400 से 800 IU विटामिन-डी

उपयोग का तरीका:

  •  मछली, डेयरी उत्पाद, पनीर और अंडे जैसे विटामिन-डी से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
  • डॉक्टर से परामर्श करने के बाद विटामिन डी के सप्लीमेंट भी ले सकते हैं।

कितनी बार इस्तेमाल करें:

कैसे लाभदायक है:

विटामिन-डी की कमी वालों में टीबी होने का खतरा अधिक होता है। इसलिए, माना जाता है कि विटामिन-डी का सेवन करने और सुबह के समय सूरज की पहली किरणों में बैठने से ट्यूबरकुलोसिस के खतरे से बचा जा सकता है। विटामिन-डी के माध्यम से टीबी की समस्या पैदा करने वाले माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के संक्रमण को रोकने और इससे होने वाली समस्या को कम करने में मदद मिल सकती है। दरअसल, विटामिन-डी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के साथ ही साइटोकिन (प्रोटीन की श्रेणी) के उत्पादन में सहायता करता है। इससे टीबी के बचाव के साथ ही इसके लक्षण को कम करने में मदद मिल सकती है (10)। अगर आप विटामिन-डी के सप्लीमेंट लेने के बारे में सोच रहे हैं, तो पहले एक बार डॉक्टर से जरूर पूछें।

2. एसेंशियल ऑयल

सामग्री:

  • दामियाना (Damiana), लिप्पिए (Lippia) तेल व सेज (Sage) ऑयल
  • डिफ्यूजर
  • पानी

उपयोग का तरीका:

  • पहले डिफ्यूजर को पानी से भर लें।
  • अब पानी से भरे डिफ्यूजर में तीनों तेल में से किसी की भी 3-4 बूंदें डाल लें।
  • अब इसे इनहेल करें।

कितनी बार इस्तेमाल करें:

  • ऐसा रोजाना 1 से 2 बार करें।

कैसे लाभदायक है:इन तीनों एसेंशियल ऑयल को लेकर किए गए एक अध्ययन की मानें, तो ये एंटीमाइकोबैक्टीरियल (Antimycobacterial) गुणों से भरपूर होते हैं।

ये गुण टीबी के बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं। इसलिए, माना जाता है कि इन एसेंशियल ऑयल का इस्तेमाल करके ट्यूबरकॉलोसिस के लक्षण से बचने में मदद मिल सकती है। साथ ही इससे बचाव भी किया जा सकता है (11)

3. ग्रीन टी

सामग्री:

  • 1 चम्मच ग्रीन टी
  • 1 कप पानी
  • शहद

उपयोग का तरीका:

  • एक कप गर्म पानी में एक चम्मच ग्रीन टी डालें।
  • उबाल आने के बाद इसे छान लें।
  • चाय को थोड़ी देर ठंडा होने के लिए रख दें।
  • फिर शहद मिलाकर पी लें।

कितनी बार इस्तेमाल करें:

  • रोजाना 1 से 2 बार ग्रीन टी का सेवन किया जा सकता है।

कैसे लाभदायक है:

एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, ग्रीन टी सहित विभिन्न चाय की पत्तियों में एपिग्लोकैटेचिन-3-गैलेट (ईजीसीजी) नामक पॉलीफेनोल्स मौजूद होते हैं। माना जाता है कि यह गुण ट्यूबरकुलोसिस के जीवाणु को बढ़ने से रोक सकता है। इसलिए, टीबी की रोकथाम और बचाव के लिए ग्रीन टी का नियमित सेवन करना अच्छा माना गया है। ग्रीन टी के साथ ही काली और ऊलोंग (Oolong) चाय का सेवन भी किया जा सकता है (12)

4. प्रोबायोटिक (Probiotics)

सामग्री:

  • एक कटोरा प्रोबायोटिक युक्त खाद्य पदार्थ, जैसे- दही

उपयोग का तरीका:

  •  प्रतिदिन प्रोबायोटिक युक्त दही के एक कटोरे का सेवन करें।

कितनी बार इस्तेमाल करें:

  • इसका सेवन दैनिक रूप से किया जा सकता है।

कैसे लाभदायक है:प्रोबायोटिक्स एक तरह के जीवित सूक्ष्म जीव यानी लाइव माइक्रोऑर्गेनिजम होते हैं।

इन्हें स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। दरअसल, प्रोबायोटिक्स में बैक्टीरिया-न्यूट्रलाइजिंग यानी जीवाणु को बेअसर करने का प्रभाव पाया जाता है। इसलिए, माना जाता है कि यह टीबी को बढ़ने से रोकने के साथ ही इससे लड़ने में भी मदद कर सकते हैं। प्रोबायोटिक्स योगर्ट व फर्मेंटिड मिल्क जैसे खाद्य पदार्थों में मौजूद होते हैं (13) (14) (15)

5. लहसुन

सामग्री:

  • 1-2 चम्मच लहसुन का पेस्ट

उपयोग का तरीका:

  • आहार में एक से दो चम्मच कुचला हुआ लहसुन व इसका पेस्ट शामिल करें।
  • इसके अलावा, सीधे लहसुन को चबाया भी जा सकता है।

कितनी बार इस्तेमाल करें:

  • इसका इस्तेमाल प्रतिदिन नियमित रूप से किया जा सकता है।

कैसे लाभदायक है:

लहसुन टीबी के बैक्टीरिया को फैलने से रोकने में मदद करता है। दरअसल, इसमें एलिसिन (Allicin) और अजिन (Ajoene) नामक यौगिक होता है, जो एंटीमाइकोबैक्टीरियल (Antimycobacterial) गुण प्रदर्शित करता है। यह टीबी के बैक्टीरिया से भी लड़ने में लाभदायक होता है। इसलिए, माना जाता है कि लहसुन ट्यूबरकुलोसिस को रोकने और क्षय रोग के लक्षण को कम करने में सहायक हो सकता है (16)

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Saral Jain
Saral Jainहेल्थ एंड वेलनेस राइटर
सरल जैन ने श्री रामानन्दाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, राजस्थान से संस्कृत और जैन दर्शन में बीए और डॉ.

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