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गर्भवती को डिलीवरी से पहले कई तरह के मेडिकल टेस्ट से गुजरना पड़ता है। इनसे गर्भवती और उसकी कोख में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य पर नजर रखी जाती है। ऐसा ही एक टेस्ट फीटल इकोकार्डियोग्राम भी है। इसे इकोकार्डियोग्राफी के नाम से भी जाना जाता है। गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के दिल से संबंधित बीमारी का पता लगाने लिए यह टेस्ट किया जाता है। कई महिलाएं जानकारी के अभाव में इस टेस्ट को नहीं कराती हैं। यही कारण है कि मॉमजंक्शन के इस लेख में हम फीटल इकोकार्डियोग्राफी क्या है, फीटल इकोकार्डियोग्राम क्यों किया जाता है और इसकी प्रक्रिया से जुड़ी विस्तृत जानकारी दे रहे हैं।

आइए, सबसे पहले यह जान लेते हैं कि फीटल इकोकार्डियोग्राम क्या है।

फीटल इकोकार्डियोग्राम या इकोकार्डियोग्राफी क्या है?

फीटल इकोकार्डियोग्राफी एक तरह का अल्ट्रासाउंड टेस्ट है। इसमें ध्वनि तरंगों के माध्यम से बच्चे के जन्म से पहले उसमें होने वाले हृदय जोखिम के बारे में मालूम किया जाता है। इस टेस्ट के दौरान भ्रूण के हृदय से होने वाले रक्त प्रवाह, धड़कन और दिल की संरचना यानी स्ट्रक्चर का पता लगाया जाता है (1)

हृदय की संरचना में असामान्यता नजर आने पर शिशु को जन्मजात हृदय दोष (सीएचडी) होने की आशंका अधिक होती है। ऐसे हजार में से आठ बच्चों में जन्मजात हृदय दोष के मामले देखे जाते हैं। फीटल इको टेस्ट की मदद से इस परेशानी का समय पर पता लगाकर इलाज किया जा सकता है (2)

आगे जानते हैं कि गर्भावस्था के दौरान इकोकार्डियोग्राम टेस्ट कब किया जाता है।

इकोकार्डियोग्राफी कब की जाती है?

फीटल इको कार्डियोग्राम टेस्ट गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के दौरान करीब 18 से 24वें हफ्ते में किया जाता है। इस टेस्ट के जरिए गर्भस्थ शिशु में हृदय से संबंधित अधिकतर समस्याओं के बारे में पता लगाने में सहायता मिल सकती है (1)

लेख के इस भाग में फीटल इको टेस्ट के उद्देश्य के बारे में जानेंगे।

इको टेस्ट क्यों किया जाता है?

गर्भावस्था में किए जाने वाले अन्य टेस्ट की तरह ही फीटल इको टेस्ट करने के पीछे भी कई कारण होते हैं, जिनके बारे में हम नीचे बता रहे हैं (1) (2):

  • हृदय से होने वाले रक्त प्रवाह को जानने के लिए
  • बच्चे के हृदय की संरचना ठीक है या नहीं, जानने के लिए
  • हृदय की धड़कन में किसी प्रकार की असमानता का पता लगाने के लिए
  • जन्मजात हार्ट डिफेक्ट के बारे में जानने के लिए
  • दिल से जुड़े रोगों को जानने के लिए
  • ट्रंकल और क्रोमोसोमल विसंगतियों (जेनेटिक गड़बड़ी) को पहचानने के लिए

निम्न परिस्थितियों में भी डॉक्टर फीटल इको टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं (1):

  • माता-पिता या भाई-बहन को दिल संबंधित बीमारी होने पर
  • अल्ट्रासाउंड में बच्चे की असामान्य हृदय लय या अन्य हृदय की समस्या का पता लगने पर
  • गर्भवती को डायबिटीज और ल्यूपस (इम्यून सिस्टम को कमजोर बनाने वाली बीमारी) होने के कारण
  • गर्भावस्था की पहली तिमाही के दौरान मां को रूबेला वायरस होने पर
  • मां द्वारा एपिलेप्सी (मिर्गी) या एक्ने की दवा लेने के कारण, जो हृदय को नुकसान पहुंचा सकती हैं

अब फीटल इको टेस्ट के लिए की जाने वाली तैयारी के बारे में नीचे जानिए।

फीटल इको टेस्ट के लिए क्या तैयारी जरूरी होती है?

नहीं, फीटल इको टेस्ट के लिए कुछ खास तैयारी की जरूरत नहीं पड़ती है(1)गर्भावस्था के दौरान अन्य अल्ट्रासाउंड कराते समय पेट में यूरिन भरा होने की आवश्यकता होती है (3) लेकिन, इकोकार्डियोग्राफी में ऐसा कुछ करने की आवश्यकता नहीं होती (1)

लेख में आगे फीटल इको टेस्ट की प्रक्रिया के बारे में जान लेते हैं।

फीटल इको स्कैन कैसे किया जाता है?

फीटस इको टेस्ट को एब्डोमिनल अल्ट्रासाउंड और ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड के जरिए किया जाता है। एब्डोमिनल अल्ट्रासाउंड में पेट और ट्रांसवेजाइनल में योनि के माध्यम से यह टेस्ट होता है (1)। फीटस इको टेस्ट में क्या होता है, इसकी प्रक्रिया को नीचे विस्तार से बताया गया है।

एब्डोमिनल इकोकार्डियोग्राफी: इस दौरान इको टेस्ट करने के लिए गर्भवती के पेट पर जेल लगाया जाता है। इसके बाद हैंडल जैसे दिखने वाले प्रोब को पेट की त्वचा के ऊपर घूमाते हैं। प्रोब ध्वनि तरंगों को प्रसारित करने का काम करता है, जिससे कंप्यूटर पर बच्चे की हृदय गति को देखा जा सकता है (1)

ट्रांसवेजाइनल इको टेस्ट: इस प्रक्रिया के दौरान भ्रूण की जांच करने के लिए डॉक्टर एक छोटा सा प्रोब गर्भवती के योनि में रखते हैं (1)। प्रोब से निकलने वाली ध्वनि तरंगें भ्रूण की छवियों को रिकॉर्ड करती हैं। इन छवियों को अल्ट्रासाउंड मशीन के जरिए मॉनिटर पर देखा जाता है (5)

भ्रूण के हृदय को लेकर किसी तरह की शंका होने पर यह जांच गर्भावस्था के शुरुआती समय में भी करवा सकते हैं (1)। इससे गर्भस्थ शिशु में गंभीर जन्मजात हृदय रोग का पता लगता है (4)बताया जाता है कि एब्डोमिनल इकोकार्डियोग्राफी की तुलना में ट्रांसवेजाइनल इको टेस्ट की तस्वीरें ज्यादा साफ होती हैं (1)

आर्टिकल के इस भाग में हम फीटस इको टेस्ट का परिणाम समझने का तरीका बता रहे हैं।

फीटस इको टेस्ट के रिजल्ट कैसे होते हैं?

निम्न बिंदुओं की सहायता से फीटस इको टेस्ट का परिणाम आसानी से समझा जा सकता है  (1):

  • नॉर्मल परिणाम: जब इकोकार्डियोग्राफी में अजन्मे बच्चे में किसी तरह की परेशानी नजर नहीं आती, तो यह सामान्य परिणाम कहलाता है।
  • एब्नार्मल परिणाम: अगर फीटस इको टेस्ट रिजल्ट में एरिथमिया (अनियमित दिल की धड़कन), बच्चे के दिल का ठीक तरीके से काम न करना और जन्मजात हृदय दोष (सीएचडी ) के संकेत मिलते हैं, तो यह असामान्य परिणाम होता है। ऐसे में कई बार डॉक्टर दोबारा टेस्ट कराने की सलाह भी दे सकते हैं।

आगे फीटस इकोकार्डियोग्राफी की संभावित सीमाओं के बारे में बात करेंगे।

फीटस इकोकार्डियोग्राफी की लिमिटेशन क्या है?

भले ही इकोकार्डियोग्राफी से भ्रूण की हृदय संबंधी परेशानियों का पता चलता है, लेकिन यह टेस्ट कुछ हृदय दोष का पता नहीं लगा पाता है। इसमें हृदय में छोटा छेद होना व हल्के वाल्व (रक्त प्रवाह को नियंत्रित करने वाला उपकरण) की समस्या शामिल है। इनके अलावा, इको टेस्ट में बच्चे के दिल से निकलने वाली हर रक्त वाहिका को देखना मुमकिन नहीं होता, जिस वजह से रक्त वाहिका संबंधी समस्याओं का पता नहीं चल पाता है (1)

फीटस इको टेस्ट के बारे में विस्तार से जानने के बाद अब इसके जोखिम पर एक नजर डाल लेते हैं।

क्या इस टेस्ट से कोई जोखिम जुड़े हैं?

फीटल इको टेस्ट की प्रक्रिया दर्द रहित होती है। इस परीक्षण को करने के लिए चीरे या कट लगाने की जरूरत नहीं पड़ती, इसलिए इसका कोई ज्ञात हानिकारक प्रभाव नहीं है। मां और शिशु दोनों के लिए इसे सुरक्षित माना गया है (1)

आगे फीटस इकोकार्डियोग्राफी की कीमत के बारे में जानिए।

फीटस इको टेस्ट की कीमत क्या होती है?

भारत में फीटस इको टेस्ट की कीमत 1600 से 3500 रुपये तक है। वैसे शहर के हिसाब से इसकी कीमत कम या ज्यादा हो सकती है।

इस लेख के माध्यम से हमने फीटस इको टेस्ट से जुड़ी हर जरूरी जानकारी दी है। यहां परीक्षण की प्रक्रिया, जांच और कीमत जैसी सभी बातों का जिक्र मौजूद है। अगर चिकित्सक ने आपको यह परीक्षण कराने का परामर्श दिया है, तो घबराएं नहीं। इस टेस्ट को पूरी तरह सुरक्षित बताया जाता है और इससे समय रहते गर्भस्थ शिशु की हृदय संबंधी परेशानी का पता लगाने में मदद मिलती है। ऐसी ही अन्य जानकारियों के लिए पढ़ते रहें मॉमजंक्शन

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