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गर्भावस्था नौ महीने का लंबा समय होता है। इसे तीन चरण में यानी तीन तिमाही में बांटा गया है। हर तिमाही में तीन महीने होते हैं और हर महीने गर्भवती महिला में कुछ नए लक्षण व बदलाव नजर आते हैं। ऐसे में इन तीनों तिमाही यानी प्रेगनेंसी की नौ महीने से जुड़ी सभी जानकारियां आपको मॉमजंक्शन के इस लेख में मिलेगी। इस लेख से हमारा उद्देश्य यह है कि महिलाओं को इस दौरान होने वाले शारीरिक और मानसिक बदलाव के साथ-साथ भ्रूण के विकास की भी जानकारी हो सके। इससे हर गर्भवती जागरूक रहेगी और मन में किसी भी तरह की उलझन नहीं रहेगी। अब बिना देर करते हुए इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।
शुरुआत करते हैं गर्भावस्था के पहले महीने से।
प्रेगनेंसी का पहला महीना
सबसे पहले जानते हैं कि गर्भावस्था के पहले महीने में महिला को अपने में क्या-क्या बदलाव दिख सकते हैं
शरीर में होने वाले बदलाव
गर्भावस्था के पहले महीने में शरीर में होने वाले बदलाव और लक्षण कुछ इस प्रकार हैं :
- पीरियड्स बंद हो जाना – प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षणों की अगर बात की जाए, तो मासिक धर्म का रुक जाना सबसे सामान्य लक्षणों में से एक है (1) (2)।
- इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग/स्पॉटिंग – गर्भावस्था के दौरान हल्का रक्तस्राव भी हो सकता है। ऐसा तब होता है, जब गर्भाशय में भ्रूण निषेचित होता है (3)। एक शोध के अनुसार 25% गर्भवती महिलाओं के साथ ऐसा होता है (4)।
- स्तनों में बदलाव – स्तनों के आकार में बदलाव होने लगते हैं और वो कोमल व भारी होने लगते हैं। उनमें दर्द की समस्या भी हो सकती है (1) (2)।
- निप्पल्स के रंग में बदलाव – प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन हार्मोन के स्तर में वृद्धि होने से गर्भवती महिला के निप्पल के रंग और आकार में बदलाव हो सकता है (5)।
- थकान – शुरुआती दौर में गर्भवती को थकान होने की शिकायत हो सकती है। ऐसा बिना कोई काम किए भी हो सकता है।
- वजन में बदलाव – गर्भावस्था के दौरान महिला का वजन कम या ज्यादा हो सकता है (1)।
- पेशाब आना – बढ़ते हुए गर्भाशय के कारण मूत्राशय (पेशाब की थैली) पर दबाव पड़ने लगता है। ऐसे में गर्भवती को महसूस होता है कि उन्हें बार-बार पेशाब करने की जरूरत हो
- मूड में बदलाव – शारीरिक ही नहीं बल्कि गर्भावस्था के दौरान मानसिक बदलाव भी होने लगते हैं। ऐसे में बार-बार मूड में बदलाव होना सामान्य है। कभी अचानक खुश हो जाना या बिना कारण चिड़चिड़ापन होने जैसी समस्याएं हो सकती है (1) (2)।
- क्रेविंग्स होना – गर्भावस्था के दौरान या शुरुआती चरण में क्रेविंग्स होना भी सामान्य है। कुछ खास तरह के खाद्य पदार्थों को खाने की इच्छा हो सकती है (1) (2)।
- पेट खराब या कब्ज होना – कुछ महिलाओं का पेट भी खराब हो सकता है। वहीं, कुछ महिलाओं को कब्ज की शिकायत हो सकती है (1)।
- सीने में जलन – कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान सीने में जलन या एसिडिटी की शिकायत भी हो सकती है (1)।
- सिरदर्द – कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के पहले महीने में सिरदर्द की शिकायत भी हो सकती है। ऐसे में घबराने की जरूरत नहीं है और दर्द ज्यादा हो, तो डॉक्टर की सलाह ले सकते हैं (1)।
- मॉर्निंग सिकनेस – गर्भावस्था के दौरान सबसे सामान्य है मॉर्निंग सिकनेस। जरूरी नहीं कि यह सुबह ही हो, ऐसा दिनभर में कभी भी हो सकता है। कुछ खास तरह की गंध भी गर्भावस्था के दौरान मॉर्निंग सिकनेस को ट्रिगर कर सकती है (1)।
- हृदय गति में बदलाव – गर्भावस्था के दौरान मन में कई प्रकार के ख्याल और हार्मोंस में बदलाव के कारण कुछ महिलाओं को हृदय गति में बदलाव या तेज सांस लेने की समस्या भी हो सकती है (2)।
- मन में उलझन – गर्भावस्था में महिला के मन में गर्भ में पल रहे शिशु और उसकी सेहत को लेकर उलझन महसूस हो। मां बनने के बाद आने वाली जिम्मेदारियों को लेकर भी कुछ उलझन या फिक्र महसूस हो सकती है। वहीं, कई बार महिला को बिल्कुल भी अपनी भावनाओं और अपने अंदर होने वाले बदलावों का पता नहीं चल पाता है (2)।
अब जानते हैं कि गर्भ में पल रहे भ्रूण में क्या बदलाव होते हैं।
बच्चे का विकास और आकार
पहले महीने में भ्रूण के विकास के बारे में हम निम्न बिंदुओं के जरिए जानकारी देने की कोशिश कर रहे हैं (6) :
- जैसे ही निषेचित अंडा बढ़ता है, उसके चारों ओर एक तरलनुमा थैली बन जाता है, जो धीरे-धीरे तरल पदार्थ से भरने लगती है। इसे एमनियोटिक थैली कहा जाता है। यह थैली भ्रूण को गर्भ में घूमने और उसके मांसपेशियों के विकास में मदद करती है (7)।
- इसी दौरान अपरा यानी प्लेसेंटा भी विकसित होती है। प्लेसेंटा गोल व सपाट अंग होता है, जो मां से बच्चे तक पोषक तत्वों को पहुंचाता है। साथ ही बच्चे से अपशिष्ट पदार्थों को स्थानांतरित करता है।
- इसके बाद भ्रूण का चेहरा आकार लेना शुरू करता है। मुंह, निचले जबड़े और गले का विकास होना शुरू हो जाता है। रक्त कोशिकाएं आकार लेना शुरू करती है और रक्त संचार शुरू हो जाता है। छोटे से हृदय की ट्यूब चौथे सप्ताह के अंत तक प्रति मिनट 65 बार धड़कने लगती है। पहले महीने के अंत तक भ्रूण लगभग 1/4 इंच लंबा यानी चावल के दाने जितना आकार ले लेता है।
अब गौर करते हैं पहले महीने में ध्यान देने वाली कुछ बातों पर।
किन बातों का ख्याल रखना चाहिए?
गर्भावस्था के पहले महीने में नीचे बताई गई बातों का ध्यान रखना जरूरी है (8) (9) (10) (11):
- सबसे पहले डॉक्टर और हॉस्पिटल का चुनाव करें, जहां पूरी गर्भावस्था के दौरान रूटीन चेकअप कराना है।
- सकारात्मक सोच को अपनाएं, अच्छा सोचें, खुश रहें।
- फॉलिक एसिड युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
- ज्यादा से ज्यादा पोषक तत्व युक्त आहार लें।
- धूम्रपान और शराब के सेवन से दूर रहें।
- चाय और कॉफी के सेवन को कंट्रोल करें।
- फाइबर युक्त आहार लें।
- अनपॉश्चरीकृत (unpasteurized) पेय और खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें। ऐसा इसलिए, क्योंकि इनमें कुछ कीटाणु हो सकते हैं, जिससे गर्भवती को समस्या हो सकती है।
- अगर अंडे का सेवन कर रहे हैं, तो उसे अच्छी तरह से उबालकर या पकाकर ही खाएं।
- कच्चे अंडे से बने खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचें।
- कच्चे स्प्राउट्स के सेवन से बचें।
- ज्यादा से ज्यादा आराम करें।
- भारी चीजों को न उठाएं या ज्यादा मेहनत वाला काम न करें।
- सॉना, जकूजी बाथ या अधिक गर्म पानी से न नहाएं। इससे डिहाइड्रेशन व चक्कर जैसी समस्या हो सकती है।
- पहले महीने से ही अपनी फोटो लेना शुरू करें, ताकि अपने शरीर में हो रहे बदलाव को समझ सकें।
गर्भावस्था के पहले महीने से जुड़ी ज्यादा जानकारी के लिए, पढ़ें ‘गर्भावस्था का पहला महीना – लक्षण, बच्चे का विकास और शारीरिक बदलाव’ से संबंधित लेख।
अब जानते हैं, गर्भावस्था के दूसरे महीने से जुड़ी जानकारियां।
प्रेगनेंसी का दूसरा महीना
जानिए प्रेगनेंसी के दूसरे महीने में महिला को क्या-क्या बदलाव और लक्षण महसूस हो सकते हैं।
शरीर में होने वाले बदलाव
दूसरे महीने में शरीर में होने वाले बदलाव और लक्षण कुछ इस प्रकार हैं :
- गर्भाशय का आकार – दूसरे महीने में गर्भाशय का आकार थोड़ा और बढ़ जाता है। यह गर्भ में पल रहे भ्रूण के विकास के कारण होता है। अब जब गर्भाशय का आकार बढ़ेगा, तो मूत्राशय पर दवाब थोड़ा और बढ़ेगा और बार-बार बाथरूम जाने की जरूरत भी बढ़ेगी।
- गंध और स्वाद में बदलाव – अब पहले के मुकाबले खाने के पसंद में थोड़े और बदलाव हो सकते हैं। हो सकता है कि कुछ खाद्य पदार्थों का स्वाद बिल्कुल न अच्छा लगे (1)।
- हार्टबर्न – गर्भावस्था के पहले महीने की तरह दूसरे महीने में भी सीने में जलन की शिकायत हो सकती है। हार्मोन और खाने की आदतों में बदलाव इसका कारण बन सकता है (12)।
- वजन का बढ़ना या घटना – जैसे-जैसे गर्भावस्था के महीने बढ़ेंगे, वजन में बदलाव भी होता रहेगा। वजन का बढ़ना या घटना, इसी बदलाव का हिस्सा है। ध्यान यह रखना है कि वजन जरूरत से ज्यादा कम या अधिक न हो।
- मूड स्विंग्स और थकान – पहले महीने की तरह ही दूसरे महीने में मूड स्विंग्स की परेशानी और थकावट की समस्या बनी रह सकती है (1)। इसलिए, मन को शांत रखना और ज्यादा से ज्यादा आराम करना इस समस्या को कम कर सकता है।
- जरूरी जानकारी : इन सबके अलावा, सिरदर्द, स्पॉटिंग, मॉर्निंग सिकनेस व सांस लेने में थोड़ी-बहुत तकलीफ जैसी परेशानियां पहले महीने की तरह ही हो सकती है। साथी ही ध्यान रहे कि गर्भावस्था के दौरान बिना डॉक्टर की सलाह के किसी भी तरह की दवाइयों का सेवन न करें।
अब जानते हैं, गर्भ में पल रहे भ्रूण के विकास से जुड़ी जानकारी।
बच्चे का विकास और आकार
जब गर्भावस्था के दिन बढ़ेंगे, वैसे-वैसे भ्रूण के विकास की गति भी तेज होगी। जानिए, दूसरे महीने में आपका नन्हा कितना विकसित हो जाएगा (6)।
- गर्भ में पल रहे भ्रूण के चेहरे के फीचर्स का विकास जारी रहेगा। कान, हाथ, पैर व उंगलियां बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
- तंत्रिका ट्यूब (मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र के ऊतक और रीढ़ की हड्डी) अच्छी तरह से बनने लगते हैं। डाइजेस्टिव सिस्टम यानी पाचन तंत्र और ज्ञानेंद्री अंगों का भी विकास शुरू हो जाता है। हड्डियां ठोस होने लगती हैं।
- शिशु के शरीर के अन्य अंगों की तुलना में सिर का आकार बढ़ने लगता है।
- दूसरे महीने के अंत तक शिशु लगभग एक इंच लंबा हो जाता है।
- लगभग 6 सप्ताह की गर्भावस्था में शिशु के हार्ट बीट यानी धड़कन के बारे में जाना जा सकता है।
अब जानते हैं कि प्रेगनेंसी के दूसरे महीने में ध्यान रखने वाली कुछ बातों के बारे में।
किन बातों का ख्याल रखना चाहिए?
गर्भावस्था के पहले महीने की तरह ही दूसरे महीने में भी गर्भवती को खुद का पूरा ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। नीचे हम इसी विषय में जानकारी दे रहे हैं।
- डॉक्टर की सलाह के अनुसार हल्के-फुल्के व्यायाम करना लाभकारी हो सकता है। ध्यान रहे कि ज्यादा देर तक या भारी व्यायाम न करें। हमेशा विशेषज्ञ की देखरेख में ही एक्सरसाइज करें (13)।
- एक बारी में ज्यादा खाने से बेहतर है कि थोड़ी देर में हल्का-फुल्का खाते रहें।
- मॉर्निंग सिकनेस से राहत के लिए नींबू चाट सकते हैं या अदरक की चाय का सेवन कर सकते हैं (14)।
- फोलिक एसिड युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन जारी रखें (15)।
- अगर डॉक्टर ने कोई डाइट चार्ट बताया है, तो उसे फॉलो करें।
- सीने में जलन की समस्या से बचने के लिए रात को देर से खाना न खाएं (14)।
- ज्यादा तले-भूने, तैलीय या जंक फूड से दूर रहें (14)।
- फाइबर युक्त आहार लें ताकि कब्ज की समस्या से राहत मिल सके (14)।
- पहले से बना हुआ खाद्य पदार्थ, मीट व चिकन का सेवन करने से बचें (14)।
- पैकेट बंद या फ्रोजेन खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें (14)।
- पहले से कटा हुआ सलाद खाने से बचें (14)।
- कच्ची सब्जियों को या फलों को अच्छे से धोने के बाद ही सेवन करें (14)।
- अगर वर्किंग हैं, तो मैटरनिटी लीव का प्लान कर लें।
गर्भावस्था के दूसरे महीने से जुडी अधिक जानकारी के लिए, पढ़ें गर्भावस्था का दूसरा महीना – लक्षण, बच्चे का विकास और शारीरिक बदलाव।
अब बढ़ते हैं गर्भावस्था के तीसरे महीने की ओर।
प्रेगनेंसी का तीसरा महीना
अब जानते हैं कि गर्भावस्था के तीसरे महीने में कौन-कौन से बदलाव हो सकते हैं।
शरीर में होने वाले बदलाव
गर्भावस्था के तीसरे महीने में नीचे बताए गए बदलाव हो सकते हैं :
- जी मिचलाना – यह समस्या कुछ महिलाओं को पूरी प्रेगनेंसी के दौरान हो सकती है और कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के पहले तिमाही में हो सकती है। इसलिए, मॉर्निंग सिकनेस से घबराने की आवश्यकता नहीं है। हां, अगर समस्या गंभीर हो और वजन में बदलाव हो, तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें (16)।
- थकावट महसूस होना – बिना कुछ किए थकावट महसूस हो सकती है, जो सामान्य है। ऐसा प्रोजेस्टेरोन हार्मोन में भारी वृद्धि के कारण हो सकता है। इसका एक कारण पोषक तत्व और खून की कमी भी हो सकता है (17)।
- नाक और मसूड़ों से खून आना – गर्भावस्था के शुरुआत में मसूड़ों और नाक से खून आना और मसूड़ों में सूजन की समस्या हो सकती है। बेशक, ऐसा होना सामान्य है, लेकिन बेहतर होगा कि यह लक्षण नजर आने पर डॉक्टर से बात जरूर करें (18)।
- ब्लीडिंग – कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के पहले 20 हफ्ते के दौरान स्पॉटिंग हो सकती है। हालांकि, आमतौर पर यह चिंता का विषय नहीं होता है, लेकिन ऐसा होने पर सावधानी के लिए अपने डॉक्टर से जरूर से सलाह लें (3)।
गर्भावस्था के तीसरे महीने में भी वजन में बदलाव, मूड स्विंग्स, स्तनों के आकार में बदलाव, बार-बार पेशाब आना और मॉर्निंग सिकनेस जैसी समस्याएं बरकरार रह सकती है।
अब जानते हैं कि तीसरे महीने में शिशु का विकास कितना होता है।
बच्चे का विकास और आकार
नीचे जानिए गर्भ में पल रहे शिशु का कितना विकास हो जाता है (6) :
- भ्रूण की बाहें, हाथ, उंगलियां, पैर और पैर की उंगलियां पूरी तरह से बननी शुरू हो जाती है। शिशु अपनी मुट्ठी और मुंह खोल और बंद कर सकता है। हाथ की उंगलियों के नाखून और पैर की उंगलियां विकसित होने लगती हैं और बाहरी कान बनते हैं। बच्चे के प्रजनन अंग भी विकसित होने लग जाते हैं।
- तीसरे महीने के अंत तक, शिशु पूरी तरह से विकसित होने लगता है।
- तीसरे महीने के अंत में शिशु 2 से 4 इंच लंबा हो जाता है।
अब जैसे-जैसे गर्भावस्था के महीने बढ़ने लगेंगे, तो कुछ बातों पर ज्यादा ध्यान देना भी जरूरी होता जाएगा।
किन बातों का ख्याल रखना चाहिए?
नीचे जानें प्रेगनेंसी में तीसरे महीने में ध्यान देने वाली कुछ बातें।
- पोषक तत्वों से भरपूर आहार का सेवन जारी रखें (19)।
- डॉक्टर के कहे अनुसार हल्के-फुल्के व्यायाम जारी रखें।
- शराब और धूम्रपान से दूरी बनाए रखें।
- डेयरी उत्पाद जैसे – पनीर व दही का सेवन करें (20)।
- आधे पके खाने का सेवन न करें।
- सब्जी और फलों की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें।
- डिब्बाबंद या फ्रोजेन खाद्य पदार्थों के सेवन से दूर रहें।
- ज्यादा से ज्यादा पानी और ताजा फलों के जूस का सेवन करें ताकि शरीर हाइड्रेट रहे।
- ज्यादा से ज्यादा स्पाइसी और ऑयली खाने से दूर रहें।
गर्भावस्था के तीसरे महीने से जुड़ी विस्तारपूर्वक जानकारी के लिए पढ़ें, मॉमजंक्शन का यह लेख।
नोट : देखा जाए, तो प्रेगनेंसी के पहले तिमाही के तीनों महीने में कुछ लक्षण और बदलाव लगभग एक समान ही होते हैं। ये बदलाव हमने जानकारी के तौर पर दिए हैं ताकि महिला को किसी भी तरह की उलझन या चिंता न रहे।
अब जानते हैं कि गर्भावस्था की पहली तिमाही में डॉक्टर कौन-कौन से टेस्ट के सुझाव दे सकते हैं।
गर्भावस्था की पहली तिमाही में होने वाले टेस्ट
पहली तिमाही में होने वाले टेस्ट कुछ इस प्रकार हैं :
- अल्ट्रासाउंड – यह सुरक्षित और दर्द रहित टेस्ट है। इसमें ध्वनि तरंगों की मदद से मॉनिटर पर भ्रूण की छवि बनती है। इसमें भ्रूण के आकार और स्थिति पता चल जाता है। इसके दौरान न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन भी किया जाता है। यह अल्ट्रासाउंड का ही हिस्सा होता है। इसमें गर्भ में पल रहे शिशु के न्यूकल फोल्ड (शिशु के गर्दन के पीछे का टिश्यू क्षेत्र) की मोटाई को मापा जाता है। इस टेस्ट में शिशु के विकास और स्वास्थ्य से संबंधित बातों का पता लगाया जा सकता है। यह टेस्ट गर्भावस्था के 11वें से 14वें सप्ताह के बीच कराया जा सकता है। जिन महिलाओं की गर्भावस्था में कोई जोखिम या जटिलाएं हो, उन्हें पहली तिमाही में कई बार अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दी जा सकती है (21) (22)।
- ब्लड टेस्ट – पहली तिमाही में कुछ खास तरह के ब्लड टेस्ट (ड्यूल मार्कर) भी हो सकते हैं, जो इस प्रकार हैं (23) :
- प्लाज्मा प्रोटीन (PAPP-A)- यह एक तरह का प्रोटीन होता है, जो गर्भनाल द्वारा बनाया जाता है। इसका असामान्य स्तर क्रोमोसोम समस्याओं के लिए एक उच्च जोखिम कारक बन सकता है।
- ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (hCG)- यह प्रारंभिक गर्भावस्था में नाल द्वारा बनाया गया एक हार्मोन है। इसका भी असामान्य स्तर क्रोमोसोम समस्याओं के लिए जोखिम कारक हो सकता है।
इसके अलावा डॉक्टर नीचे बताए गए जांच की भी सलाह दे सकते हैं (24) (21):
- ब्लड काउंट
- ब्लड ग्रुप और एंटीबॉडी
- रूबेला
- हेपेटाइटिस बी और सी
- एचआईवी एंटीबॉडी
- क्लैमाइडिया स्क्रीनिंग
- गर्भावधि मधुमेह (gestational diabetes) के लिए ग्लूकोज चैलेंज
- यूरिन टेस्ट
- ट्यूबरक्लोसिस
- थायराइड
- कॉरिओनिक वायलस सैंपलिंग (CVS)
- सेल फ्री फीटल डीएनए टेस्टिंग (NIPT)
अब जानते हैं, प्रेगनेंसी के चौथे महीने से जुड़ी जरूरी जानकारी।
प्रेगनेंसी का चौथा महीना
अब जानते हैं गर्भावस्था के चौथे महीने में दिखने वाले लक्षण और शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में ।
शरीर में होने वाले बदलाव
चौथे महीने के दौरान इस तरह के बदलाव और लक्षण नजर आ सकते हैं
- अच्छा महसूस करना – जैसे ही दूसरी तिमाही में यानी गर्भावस्था के चौथे महीने में महिला प्रवेश करेंगी, उन्हें शारीरिक और मानसिक तौर पर थोड़ी राहत महसूस हो सकती है। थकान की शिकायत थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर महिला के साथ ऐसा हो (2)।
- शरीर में दर्द – धीरे-धीरे जब गर्भावस्था के दिन बढ़ेंगे और पेट का आकार व वजन बढ़ना शुरू होगा, तो शरीर में हल्के-फुल्के दर्द और ऐंठन की शिकायत भी होने लगेगी। इस दौरान, पेट के निचले हिस्से, पेल्विक, पीठ व कमर में दर्द की शिकायत शुरू हो सकती है (1)।
- स्ट्रेच मार्क्स – जैसे-जैसे पेट का आकार बढ़ना शुरू होगा, त्वचा में भी बदलाव शुरू होने लगेगा। यही वो वक्त है, जब महिला को शरीर के कुछ हिस्सों में हल्के-फुल्के स्ट्रेच मार्क्स दिख सकते हैं (1)।
- चिंता – गर्भावस्था के चौथे महीने में महिला को चिंता भी महसूस हो सकती है। छोटी-छोटी बातों को लेकर फिक्रमंद होना या गर्भावस्था के दौरान होने वाली जांच और शिशु के स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताएं भी हो सकती हैं (2)।
- क्रेविंग्स – चौथे महीने में प्रवेश करने के बाद महिला की क्रेविंग्स और ज्यादा बढ़ सकती है। बहुत ज्यादा तीखा, मीठा या जंक फूड्स खाने की क्रेविंग हो सकती है। वहीं, कुछ खास तरह के गंध और स्वाद का न पसंद होना भी पहली तिमाही की तरह बरकरार रह सकता है (2)।
अब जानते हैं कि चौथे महीने में गर्भ में शिशु का कितना विकास हो जाता है।
बच्चे का विकास और आकार
जानिये बच्चे के विकास के बारे में (25)।
- बच्चे की पलकें बंद रहती हैं।
- बेबी का चेहरा अच्छी तरह से आकार ले लेता है।
- अंग लंबे और पतले होते हैं।
- उंगलियों और पैर की उंगलियों पर नाखून बनने और दिखने लग जाते हैं।
- जननांग का निर्माण हो जाता है।
- बेबी का लिवर लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने में लग जाता है।
- बच्चे के आकार की तुलना में सिर बड़ा होता है।
- आपका बेबी अब मुट्ठी बना सकता है।
अब चौथे महीने में ध्यान रखने वाली बातों के बारे में जानते हैं।
किन बातों का ख्याल रखना चाहिए?
नीचे पढ़ें कि चौथे महीने में किन चीजों का ध्यान रखना जरूरी है :
- चौथे महीने में सोने की मुद्रा पर ध्यान दें। करवट लेकर सोने की कोशिश करें ताकि आराम महसूस हो।
- दिनभर में थोड़ी देर के लिए पावर नैप लें (26)।
- धीरे-धीरे कपड़ों के चुनाव में ध्यान देना शुरू करें।
- दूसरी तिमाही में सामान्य गर्भावस्था में प्रतिदिन 2200 कैलोरी युक्त भोजन लेना आवश्यक है (20)।
- अपने वजन व ब्लड प्रेशर पर ध्यान दें और नियमित रूप से चेक करते रहें (27)।
- आरामदायक फुटवियर का चुनाव करें।
चौथे महीने के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।
अब बारी आती है थोड़ा और आगे बढ़ने की और प्रेगनेंसी के पांचवें महीने के बारे में जानने की।
प्रेगनेंसी का पांचवां महीना
नीचे विस्तार से जानिए प्रेगनेंसी के पांचवें महीने में शरीर में होने वाले बदलावों और लक्षणों के बारे में।
शरीर में होने वाले बदलाव और लक्षण
प्रेगनेंसी का पांचवां महीने दूसरी तिमाही का हिस्सा है। इस दौरान शरीर में होने वाले बदलाव और लक्षण कुछ इस प्रकार हैं :
- पैचेस – त्वचा में बदलाव शुरू हो सकते हैं। गाल, माथा, नाक, अपर लिप्स पर पैचेस हो सकते हैं। इन्हें मास्क ऑफ प्रेगनेंसी कहा जाता है (1)। इस महीने में भी स्तनों के आकार और निपल्स के रंग में बदलाव हो सकते हैं।
- हाथ में झुनझुनी होना – पांचवें महीने में या दूसरी तिमाही में कभी भी हाथ सुन्न महसूस हो सकते हैं या हाथों में झुनझुनी महसूस हो सकती है। इसे कार्पल टयूनल सिंड्रोम (carpal tunnel syndrome) कहते हैं (1)। ऐसा गर्भावस्था के दौरान शरीर में मौजूद एक्स्ट्रा फ्लूइड के कारण हो सकता है (28)। यह पैरों में भी हो सकता है। दरअसल, बढ़ते गर्भाशय के कारण पैरों की नसें दबने के कारण ऐसा हो सकता है (29)।
- सूजन – इस दौरान पैरों, टखनों, उंगलियों और चेहरे पर सूजन की समस्या हो सकती है। हां, अगर अचानक से शरीर में ज्यादा सूजन या वजन बढ़ने की समस्या दिखे, तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें (1)।
- बाल और नाखूनों में बदलाव – जैसे-जैसे गर्भावस्था आगे बढ़ेगी शरीर के अंगों के साथ-साथ बाल और नाखूनों में भी बदलाव दिखने लगेगा। हो सकता है बाल और नाखून बहुत कमजोर हो जाएं या हो सकता है कि बाल मोटे और नाखून मजबूत हो जाएं। हर महिला में इसके लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं (2)।
- एकाग्रता में बदलाव – अगर मूड स्विंग्स की बात की जाए, तो यह पूरी प्रेगनेंसी के दौरान अलग-अलग तरह से सामने आ सकते हैं। किसी काम में फोकस न कर पाना भी इसी का हिस्सा है। किसी काम में मन न लगना व बेचैनी होने की समस्या भी महसूस हो सकती है (2)।
- भूलने की समस्या – गर्भवती को भूलने की समस्या भी हो सकती है जो तीसरी तिमाही तक रह सकती है। यह सामान्य है और ऐसा होने पर चिंता करने की जरूरत नहीं है (2)।
अब जानते हैं बच्चे के विकास और आकार के बारे में।
बच्चे का विकास और आकार
जानिए, पांचवें महीने में शिशु का विकास कितना हो सकता है (25)।
- इस महीने में गर्भवती अपने शिशु की हलचल को महसूस कर सकती है।
- गर्भ में शिशु के पहले मूवमेंट को क्विकनिंग (quickening) कहा जाता है।
- शिशु के सिर पर बाल उगने लगते हैं। शिशु के कंधे, पीठ और पैर महीन बालों से कवर होने लगते हैं, जिन्हें लानुगो कहा जाता है। ये बाल शिशु की सुरक्षा करते हैं।
- बच्चे की त्वचा सफेद कोटिंग के साथ कवर होती है, जिसे वर्निक्स केसोसा (vernix caseosa) कहा जाता है। यह पदार्थ बच्चे की त्वचा को एमनियोटिक द्रव से बचाने के लिए माना जाता है। यह कोट जन्म से ठीक पहले निकल जाता है।
अब जानते हैं कुछ ध्यान देने वाली बातों के बारे में।
किन बातों का ख्याल रखना चाहिए?
नीचे पढ़ें कि पांचवें महीने में किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
- जैसे कि दूसरी तिमाही में त्वचा में बदलाव शुरू होने लगते हैं, ऐसे में त्वचा का खास ध्यान रखना जरूरी हो जाता है। ज्यादा से ज्यादा त्वचा को मॉइस्चराइज करें।
- स्ट्रेच मार्क्स क्रीम का उपयोग करना शुरू करें। चाहें तो इसके लिए डॉक्टरी परामर्श भी ले सकते हैं।
- अगर महिला कहीं बाहर जाना चाहती है, तो डॉक्टर की सलाह के अनुसार यात्रा करने का निर्णय लें।
- अपने पेट का माप लें, ताकि शिशु की ग्रोथ का अनुभव हो सके (27)।
- नियमित रूप से वजन, शुगर और ब्लड प्रेशर चेक करें (27)।
- रूटीन चेकअप को न भूलें।
- खूब पानी पिएं।
- खाने-पीने का ध्यान रखें और स्वस्थ आहार लें।
- हाइजिन का पूरा ध्यान रखें।
- सोने की मुद्रा का ध्यान रखें, पेट या पीठ के बल न सोएं।
- अपने कपड़ों व फुटवियर पर ध्यान दें और आराम के अनुसार ही उनका चुनाव् करें।
- गोद भराई रस्म कराने की इच्छा रखती हैं, तो उसके बारे में प्लान करें।
प्रेगनेंसी के पांच



