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गर्भावस्था के लक्षणों को समझना कुछ मामलों में थोड़ा मुश्किल हो सकता है। बेशक, इस दौरान महिला को उल्टी, मतली व पीरियड मिस होने जैसे संकेत नजर आते हैं (1)। इन संकतों के बावजूद कई बार महिला के मन में गर्भधारण हुआ है या नहीं, इसको लेकर संशय बना रहता है। इस असमंजस को दूर करने में इम्पलांटेशन ब्लीडिंग सहायक हो सकती है। जी हां, इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग भी गर्भावस्था का एक आम लक्षण है, जिससे गर्भवस्था से जुड़ी शंका को दूर किया जा सकता है। मॉमजंक्शन के इस लेख में जानिए कि इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग किसे कहते हैं और यह चिंता का कारण कब बनती है।
सबसे पहले भाग में हम बता रहे हैं कि इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग क्या होती है।
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग क्या है? | Implantation Bleeding Meaning In Hindi
जब फर्टीलाइज अंडे का गर्भाशय में आरोपण यानी इम्प्लांटेशन होता है, तो योनि से हल्का रक्तस्राव हो सकता है। इसे स्पॉटिंग या इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग कहते हैं (2)। बताया जाता है कि हर चार में से एक महिला को यह रक्तस्राव होता है। इस दौरान होने वाली ब्लीडिंग माहवारी की तरह भारी नहीं होती है (3)।
आगे जानिए कि गर्भावस्था के दौरान यह स्पॉटिंग कब होती है।
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग कब होती है? | Implantation Bleeding Kab Hoti Hai In Hindi
सभी महिलाओं का शरीर और गर्भावस्था एक जैसी नहीं होती, इस कारण इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग होने का समय सभी के लिए अलग-अलग हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान स्पॉटिंग फर्टीलाइज अंडे के आरोपण (इम्प्लांटेशन) के 6 से 12 दिन के बीच या फिर गर्भावस्था के शुरुआती 12 हफ्ते में कभी भी हो सकती है (1)।
अगले भाग में आप जानेंगे कि इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग चिंता की वजह कब बन जाती है।
क्या इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग चिंता का कारण है?
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग या स्पॉटिंग एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और गर्भावस्था के शुरुआती आम लक्षणों में से एक है। इस दौरान बहुत कम समय के लिए हल्की ब्लीडिंग होती है। इस कारण माना जाता है कि स्पॉटिंग चिंता का विषय नहीं है, फिर भी भ्रूण की सही स्थिति और विकास को निश्चित करने के लिए अपने गायनोकोलॉजिस्ट के निर्देश के अंतर्गत सोनोग्राफी करवाना एक आवश्यक है। हां, अगर रक्तस्राव माहवारी की तरह या उससे भी ज्यादा हो रहा है, तो बिना समय गंवाए तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए (3)।
लेख के अगले भाग में जानिए कि इसकी समयावधि कितनी होती है।
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग कितने दिन तक होती है? | Implantation Bleeding Timing In Hindi
सभी महिलाओं का शरीर और उनकी गर्भावस्था एक जैसी नहीं होती। इसी वजह से कुछ महिलाओं को यह ज्यादा और कुछ को कम समय के लिए हो सकती है। आमतौर पर इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग एक दिन तक हो सकती है। रिसर्च में बताया गया है कि गंभीर परिस्थितियों में पांच दिन तक लगातार महिला को रक्तस्राव हो सकता है, जिसके परिणाम अच्छे नहीं देखे गए (4)। इसी वजह से एहतियातन महिला को एक या दो दिन से ज्यादा होने वाली हल्की ब्लीडिंग में भी डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
अब स्पॉटिंग यानी इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग की गणना से जुड़ी जानकारी पर एक नजर डाल लेते हैं।
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग की गणना कैसे करें?
स्पॉटिंग को लेकर हम ऊपर बता ही चुके हैं कि यह इम्प्लांटेशन के 6 से 12 दिन के बीच या फिर गर्भावस्था के शुरुआती 12 हफ्ते में कभी भी हो सकती है। ऐसे में इसकी गणना कर पाना मुश्किल है। हां, आप कैलकुलेटर की मदद से इम्प्लांटेशन का अनुमान जरूर लगा सकती हैं। जी हां, ऐसे कई कैलकुलेटर हैं, जो इम्प्लांटेशन की तारीख का अनुमान लगाने में मदद कर सकते हैं। आप इस इम्प्लांटेशन कैलकुलेटर पर क्लिक करके भी जान सकते हैं। बस इसमें आपको अपनी ओव्यूलेशन की तारीख डालनी है। अगर वह याद नहीं है, तो आप अपनी पिछली माहवारी के पहले दिन की तारीख भी डाल सकती हैं।
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आगे आप जानेंगे इम्प्लांटेशन के विभिन्न स्तरों के बारे में।
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग के चरण
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग के कोई चरण नहीं होते, क्योंकि यह गर्भावस्था के शुरुआती लक्षणों में से एक है। आमतौर पर यह एक या दो दिन तक हल्के रक्तस्राव के रूप में दिखाई देता है, जो अधिकतर चिंता का विषय नहीं होता। हां, इम्प्लांटेशन के चरण जरूर होते हैं, जिन्हें तीन स्टेज में बांटा गया है। आइए, इनके बारे में नीचे जानते हैं (5) :
- एपोजिशन (Apposition) : इसमें ब्लास्टोसिस्ट यानी कोशिकाओं का समूह, जिनसे भ्रूण बनता है वह गर्भाशय की भीतरी परत यानी एंडोमेट्रिएम के संपर्क में आता है।
- एडहेशन (Adhesion) : इस चरण में भ्रूण ब्लास्टोसिस्ट की बाहरी यानी ट्रोफोब्लास्ट कोशिकाएं, जो आगे चलकर नाल बनाती हैं, वो गर्भाशय की म्यूकस झिल्ली से जुड़ जाती हैं।
- इंवेजन (Invasion) : इस आखिरी स्टेज में ट्रोफोब्लास्ट कोशिकाएं सफलतापूर्वक गर्भाशय की सबसे भीतरी परत में पहुंच जाती हैं।
लेख के अगले भाग में आप इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग और माहवारी के बीच के फर्क के बारे में जानेंगे।
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग और मेंस्ट्रुअल साइकिल के बीच अंतर | Implantation Bleeding Vs Period
स्पॉटिंग और माहवारी के कुछ लक्षण मिलते-जुलते होते हैं, जिनके कारण इनके बीच का फर्क समझने में समस्या हो सकती है। ऐसे में नीचे दिए गए टेबल की मदद से स्पॉटिंग और माहवारी के बीच के फर्क को समझने में मदद मिल सकती है (6) (7):
स्पॉटिंग | पीरियड्स | |
---|---|---|
फ्लो | इस दौरान बहुत हल्का रक्तस्राव होता है। | इस दौरान रक्तस्राव भारी होता है। |
रंग | इस समय निकलने वाले खून का रंग गुलाबी या भूरा हो सकता है। | इसमें निकलने वाले खून का रंग अक्सर लाल या गहरा लाल हो सकता है। |
अवधि | स्पॉटिंग एक से दो दिन हो सकती है। | माहवारी चार दिन से एक हफ्ते तक चल सकती है। |
ऐंठन | इस दौरान अक्सर महिलाओं को स्पॉटिंग के कारण पेट में दर्द या ऐंठन नहीं होती। | इस दौरान महिला को पेट में दर्द और ऐंठन होना आम है। |
आगे जानिए इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग और पीरियड्स से जुड़ी कुछ अन्य जानकारियां।
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग पीरियड के कितने दिन पहले होती है? | Implantation Bleeding Period Ke Kitne Din Pehle Hoti Hai
जैसा कि हम बता चुके हैं कि इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग गर्भावस्था के लक्षणों में से एक होता है। ऐसे में इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग या स्पॉटिंग के बाद पीरियड नहीं आते (8)। हां, कुछ महिलाओं को इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग माहवारी की तारीख के आसपास होती है, जो आम बात है। इसे मासिक धर्म समझने की गलती न करें (2)। हां, अगर किसी गर्भवती को इस दौरान भारी रक्तस्राव हो रहा है, तो उसे जल्दी डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। यह किसी गंभीर समस्या जैसे गर्भपात का संकेत हो सकता है (8)।
इस लेख के आने वाले भाग में आप इम्प्लांटेशन के लक्षणों के बारे में जानेंगे।
प्रेगनेंसी इम्प्लांटेशन – संकेत और लक्षण
इम्प्लांटेशन एक तरह से वह स्थिति होती है, जब महिला गर्भधारण कर लेती है। हम ऊपर बता ही चुके हैं कि इम्पलांटेशन के स्टेज के दौरान भ्रूण के बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। ऐसे में इम्प्लांटेशन के बाद गर्भावस्था के लक्षण महसूस हो सकते हैं, जिनके बारे में नीचे बताया गया है (1) :
- संवेदनशील स्तन : इस दौरान हॉर्मोन में बदलाव के कारण स्तनों में भारीपन महसूस हो सकता है। ऐसा कंसेप्शन के एक-दो हफ्ते के बीच होना संभव है।
- थकान : गर्भवस्था के शुरुआती दौर में महिला के शरीर में प्रोजेस्ट्रोन की मात्रा बढ़ने लगती है, जिस कारण उसे थकावट महसूस हो सकती है। यह थकावट गर्भधारण करने के पहले हफ्ते से ही महसूस हो सकती है।
- सिरदर्द : गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में हॉर्मोन में अचानक होने वाले बदलाव के कारण कुछ महिलाओं को सिरदर्द की समस्या हो सकती है।
- उल्टी या मतली : इसे आमतौर पर मॉर्निंग सिकनेस भी कहा जाता है। यह गर्भावस्था के दूसरे हफ्ते से शुरू होता है और पूरी गर्भावस्था के दौरान महिला को इससे जूझना पड़ सकता है।
- बार-बार पेशाब आना : बार-बार पेशाब आना गर्भावस्था के आम लक्षणों में से एक है। इस दौरान एचसीजी हॉर्मोन का स्तर शरीर में बढ़ता है, जिस कारण पेल्विक क्षेत्र में ब्लड फ्लो बढ़ जाता है। इसी वजह से गर्भावस्था में बार बार पेशाब आने की समस्या हो सकती है।
- मूड स्विंग : गर्भावस्था के शुरुआती एक हफ्ते में ही महिला का मूड स्विंग होने लगता है। इसका कारण भी हॉर्मोनल बदलाव हो सकते हैं। इस दौरान महिलाओं को कुछ खाने या कुछ न खाने की तीव्र इच्छा भी हो सकती है, जिसे फूड क्रेविंग कहा जाता है।
इम्प्लांटेशन के संकेत के बाद आपको बताते हैं कि इसके बाद गर्भावस्था की जांच कब करवानी चाहिए।
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग के बाद प्रेगनेंसी टेस्ट कब करवाना चाहिए? | Implantation Bleeding Ke Kitne Din Baad Pregnancy Test Kare In Hindi
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग के बाद प्रेगनेंसी टेस्ट कब करवाना चाहिए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस तरह का प्रेगनेंसी टेस्ट करवा रहे हैं। अगर प्रेगनेंसी किट या ब्लड टेस्ट से गर्भावस्था की पुष्टि करनी है, तो महिला के शरीर में एचसीजी (HCG) हॉर्मोन का होना जरूरी है। यह गर्भधारण के 10 दिन बाद ही आता है। इसी वजह से सटीक परिणाम पाने के लिए पीरियड मिस होने का इंतजार करें। माहवारी की तारीख निकलने के बाद कुछ दिन रुककर प्रेगनेंसी टेस्ट करवाने से परिणाम सटीक आने की संभावन बढ़ जाती है (9)।
आगे जानिए कि इम्प्लांटेशन की संभावना को कैसे सुधारा जा सकता है।
आप इम्प्लांटेशन की संभावना को कैसे सुधार कर सकती हैं?
एनसीबीआई द्वारा प्रकाशित एक शोध में इस बात की पुष्टि की गई है कि विभिन्न पोषक तत्व लेने से इम्प्लांटेशन की संभावना को बढ़ाया जा सकता है। इनमें संतुलित मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स, हल्के डेयरी उत्पाद, प्रोटीन और अनसैचुरेटेड फैट को शामिल किया गया है। इनके साथ ही मेडिटरेनीयन डाइट भी महिलाओं की प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में सहायक हो सकती है। इस डाइट में नीचे बताए गए खाद्य पदार्थ शामिल हैं (10)।
- साबुत अनाज
- विभिन्न तरह की दाल
- फल और सब्जियां
- विभिन्न तरह के नट्स
- मछली
- ओलिव ऑयल
आगे हम इम्पलांटेशन ब्लीडिंग से जुड़े पाठकों के कुछ सवालों के जवाब दे रहे हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग में खून का रंग कैसा होता है?
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग का रंग वैसे तो स्पष्ट नहीं है, लेकिन माना जाता है कि यह हल्के गुलाबी या भूरे रंग का हो सकता है (7)।
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग में कितना दर्द होता है?
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग में अक्सर दर्द नहीं होता (7)।
अगर पीरियड के मिस होने के बाद इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग होती है, तो क्या करना चाहिए?
यह गर्भधारण करने का संकेत हो सकता है। इसकी पुष्टि करने के लिए तुरंत डॉक्टर से सलाह लेकर गर्भावस्था की जांच करवाई जा सकती है।
इस लेख में हमने आपको इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग से जुड़ी लगभग सारी जानकारी देने की कोशिश की है। आशा करते हैं कि अब आप यह समझ चुके होंगे कि गर्भधारण करने के बाद हल्की ब्लड स्पॉटिंग होना चिंता का विषय नहीं है। हां, अगर सिर्फ स्पॉटिंग नहीं, बल्कि ज्यादा रक्तस्राव हो रहा है, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह ली जानी चाहिए। इस दौरान सतर्कता ही आपको बड़े जोखिम से बचा सकती है। जी हां, अगर आप हल्की स्पॉटिंग और तेज ब्लीडिंग में फर्क कर लेंगे, तो आसानी से समझा जा सकता है कि यह गर्भधारण का लक्षण है या किसी जटिलता का। इस लेख को दोस्तों के साथ शेयर करके इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग समझने में उनकी मदद करें।
Read this article in English.
References
1. What are some common signs of pregnancy by NICHD
2. Assessment of First Trimester Vaginal Bleeding Using Ultrasound Sonography by Allied Academics
3. Vaginal bleeding in pregnancy by MedlinePlus
4. Vaginal bleeding in very early pregnancy by Oxford Academy
5. A Review of Mechanisms of Implantation by NCBI
6. Association Between First-Trimester Vaginal Bleeding and Miscarriage by NCBI
7. Patterns and predictors of vaginal bleeding in the first trimester of pregnancy by NCBI
8. Vaginal bleeding in early pregnancy by MedlinePlus
9. Pregnancy tests by WomensHealth
10. Mediterranean diet improves embryo yield in IVF: a prospective cohort study by NCBI