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हर महिला के लिए गर्भावस्था का समय काफी खास होता है। हो भी क्यों न, आखिर यही तो वह पल है, जो एक महिला को संपूर्णता का एहसास कराता है। जितना खास यह भाव है, उससे कहीं ज्यादा यह वक्त सावधानी बरतने का है और यह बात हर महिला अच्छे से जानती है। बावजूद इसके गर्भावस्था से जुड़ी कई समस्याएं ऐसी हैं, जिनमें फंसने के बाद महिलाएं असमर्थ महसूस करती हैं। ऐसी ही एक समस्या है, क्रिप्टिक प्रेगनेंसी। बहुत कम ही लोग इस समस्या से परिचित होंगे। यह भी मुमकिन है कि कई को इसका नाम तक न पता हो। ऐसे में मॉमजंक्शन का यह लेख क्रिप्टिक प्रेगनेंसी को समझने में मददगार साबित होगा।

आइए, सबसे पहले हम क्रिप्टिक प्रेगनेंसी क्या है यह समझ लेते हैं।

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी क्या है?

गर्भधारण के बावजूद अगर महिला को पता ही न चले कि वह गर्भवती हुई है तो क्या हो! सुनने में यह बात भले ही नामुमकिन लग रही हो, लेकिन ऐसा हो सकता है। क्रिप्टिक प्रेगनेंसी ऐसी ही अवस्था है, जिसमें महिला को लंबे समय तक अपने गर्भवती होने का पता नहीं चलता है। इतना ही नहीं गर्भावस्था में सामान्य तौर पर दिखने वाले लक्षण, जैसे- मतली-उल्टी का एहसास, मासिक धर्म का बंद होना और पेट में सूजन भी इस अवस्था में नहीं दिखाई देते हैं। क्रिप्टिक प्रेगनेंसी से जुड़े पुराने शोध के आधार पर माना जाता है कि 475 महिलाओं में से किसी एक को यह समस्या हो सकती है, लेकिन अब इस समस्या के आंकड़े पहले से अधिक देखने को मिल सकते हैं (1)। क्रिप्टिक प्रेगनेंसी को गुप्त गर्भावस्था, स्टील्थ प्रेगनेंसी या डिनाइड प्रेगनेंसी के नाम भी जाना जाता है।

अब हम लेख में आगे बढ़कर क्रिप्टिक प्रेगनेंसी के लक्षणों को समझने का प्रयास करेंगे।

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी के लक्षण

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी बहुत ही जटिल समस्या है। इसमें आमतौर पर गर्भावस्था के कोई भी ज्ञात लक्षण, जैसे- मॉर्निंग सिकनेस, वजन बढ़ना, पेट फूलना आदि नजर नहीं आते हैं। इतना ही नहीं इस अवस्था में घरेलू प्रेगनेंसी किट टेस्ट से भी गर्भवती के होने का पता नहीं चल पाता है, क्योंकि इस दौरान एचसीजी (ह्यूमन कोरिओनिक गोनैडोट्रोपिन) हॉर्मोन का स्तर काफी कम होता है। प्रेगनेंसी में एचसीजी हॉर्मोन की अधिकता से ही प्रेगनेंसी का पता लगाया जाता है (1) (2)। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि क्रिप्टिक प्रेगनेंसी के कोई भी ज्ञात लक्षण नहीं हैं।

लेख के अगले भाग में क्रिप्टिक प्रेगनेंसी के कारण समझाने का प्रयास किया गया है।

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी के कारण

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी के पीछे मनोवैज्ञानिक और गैर-मनोवैज्ञानिक कारण शामिल हो सकते हैं। इन सभी कारणों को हम यहां क्रमवार बता रहे हैं। इन कारणों को जानने के बाद क्रिप्टिक प्रेगनेंसी होने की मुख्य वजह को समझा जा सकता है, जो कि मुख्य रूप से तनाव और हॉर्मोनल गड़बड़ी का नतीजा हो सकती है।

1. गैर-मनोवैज्ञानिक कारण

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी के गैर-मनोवैज्ञानिक कारण कुछ इस प्रकार हो सकते हैं (1) (3):

  • सामाजिक और शैक्षिक स्तर की कमी का होना। दरअसल, कई बार महिलाएं कम ज्ञान के कारण गर्भावस्था के लक्षणों से परिचित नहीं होती। इस कारण वह लंबे समय तक अपने गर्भवती होने का अनुमान नहीं लगा पाती हैं।
  • सामाजिक सहयोग की कमी यानी गर्भवती का खुद को अकेला महसूस करना भी क्रिप्टिक प्रेगनेंसी का कारण बन सकता है। अकेलेपन के कारण महिला तनाव में रहती है और मां नहीं बनना चाहती, जो हॉर्मोनल बदलाव का कारण बनता है और क्रिप्टिक प्रेगनेंसी की आशंका बढ़ जाती है।
  • पूर्व में बच्चे से अलगाव की स्थिति, जैसे- गर्भपात या पूर्व में गर्भापात भी एक कारण हो सकता है, जो गर्भवती में मां बनने की इच्छा को कम कर देता है। इस कारण अक्सर महिलाएं अपनी गर्भावस्था के लक्षणों को पहचान नहीं पाती हैं।
  • पूर्ण रूप से गर्भपात न हो पाने के कारण। दरअसल, कई बार बच्चे के लिए तैयार न होने की स्थिति में महिलाएं गर्भपात को वरीयता देती हैं। इस स्थिति में अगर गर्भपात पूरी तरह से नहीं हो पाया है, तो क्रिप्टिक प्रेगनेंसी की आशंका बढ़ जाती है।
  • जींस या गुणसूत्र संबंधी विकार के कारण भी कई मामलों में महिलाओं में गर्भावस्था से जुड़े लक्षण नजर नहीं आते हैं। ऐसे में यह भी क्रिप्टिक प्रेगनेंसी का एक कारण माना जा सकता है।

2. मनोवैज्ञानिक कारण

कुछ मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं, जिनकी वजह से हॉर्मोनल बदलाव की स्थिति पैदा होती है। ऐसे में महिलाएं गर्भावस्था के लक्षणों को या तो समझ नहीं पाती हैं या फिर उनमें गर्भावस्था के कोई लक्षण दिखाई ही नहीं देते हैं। इस कारण भी क्रिप्टिक प्रेगनेंसी की स्थिति पैदा हो सकती है। यह मनोवैज्ञानिक कारण कुछ इस प्रकार हो सकते हैं (1) (3):

  • बचपन में हुए शारीरिक, मानसिक या यौन शोषण के कारण हॉर्मोनल बदलाव की स्थिति पैदा हो सकती है, जो क्रिप्टिक प्रेगनेंसी की आशंका को बढ़ा सकती है।
  • कई बार शारीरिक संबंध प्रक्रिया में असहजता की स्थिति के कारण महिलाएं सुनिश्चित नहीं कर पाती कि वह गर्भवती हुई हैं। ऐसे में महिलाएं गर्भावस्था के शारीरिक और मानसिक लक्षणों को पहचानने में असफल रहती हैं।
  • रिजेक्शन ऑफ फीटस (भ्रूण को धारण करने की क्षमता में कमी)। दरअसल, जिन महिलाओं में भ्रूण को धारण करने की क्षमता की कमी होती है, वो महिलाएं अपने मन में बिठा लेती हैं कि वे मां नहीं बन सकती हैं। इस कारण उन्हें अपनी गर्भावस्था की स्थिति का अंदाजा नहीं लग पाता है।
  • होने वाले बच्चे के पिता के प्रति अधिक गुस्से के कारण भी क्रिप्टिक प्रेगनेंसी की स्थिति पनप सकती है। दरअसल, महिलाओं में अपने पति के प्रति अधिक गुस्सा या नारजगी होती है, तो वह उनके बच्चे की मां बनना स्वीकार नहीं करती हैं। ऐसे में वह तनाव में रहती हैं, जिस वजह से उनकी हॉर्मोनल स्थिति बिगड़ जाती है। इस वजह से ऐसी महिलाओं में गर्भावस्था के सामान्य लक्षण जल्दी दिखाई नहीं देते हैं।
  • परिवार द्वारा बच्चे को न अपनाने के डर के कारण भी क्रिप्टिक प्रेगनेंसी की स्थिति पैदा हो सकती हैं। इसके पीछे भी तनाव और हॉर्मोनल बदलाव ही बड़ा कारण माने जाते हैं।
  • बच्चे को न अपना पाने के भय की स्थिति भी क्रिप्टिक प्रेगनेंसी की वजह हो सकती है। दरअसल, ऐसी महिलाएं जिनके परिवार में बेटी की जगह बेटे की चाह रखी जाती है, उन्हें डर रहता है कि बेटी होने पर उनके बच्चे को अपनाया नहीं जाएगा। यह स्थिति महिलाओं में मानसिक तनाव या अवसाद की स्थिति पैदा कर सकती है। ऐसे में महिलाएं को खुद की गर्भावस्था के बारे में पता नहीं चल पाता है या फिर उनमें गर्भावस्था के कोई लक्षण नजर ही नहीं आते हैं।

इसके अलावा, क्रिप्टिक प्रेगनेंसी के कुछ और भी कारण माने जाते हैं, जिनके संबंध में कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। यह कारण कुछ इस प्रकार हो सकते हैं :

  • पॉलीसिस्टिक ओवरियन सिंड्रोम (पीसीओएस)।
  • समय से पूर्व ही मासिक चक्र का बंद होना (premature menopause)।
  • पेरीमेनोपॉज (मासिक धर्म से पहले का फेज) यानी मासिक धर्म पूरी तरह से खत्म होने के पहले का समय जब मासिक अनियमित होने लगती है।
  • जरूरत से अधिक दुबला-पतला होना।
  • गर्भनिरोधक गोलियों का उपयोग।

यहां अब हम क्रिप्टिक प्रेगनेंसी कितने समय तक रह सकती है, इस बात को समझेंगे।

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी कब तक रहती है?

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी कब तक रहती है, इस बारे में स्पष्ट रूप से कुछ भी कह पाना बहुत मुश्किल है। कुछ मामलों में गर्भावस्था की पहली तिमाही तक महिलाओं को अपनी गर्भावस्था का पता नहीं लग पाता है (2)। वहीं, कुछ मामलों में ऐसा भी संभव है कि गर्भावस्था की अंतिम तिमाही या फिर प्रसव तक भी महिलाओं को अपने गर्भवती होने का एहसास न हो (4)

आगे अब हम जानेंगे कि आखिर क्यों प्रेगनेंसी टेस्ट में नकारात्मक परिणाम दिखाई देते हैं।

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी में प्रेगनेंसी टेस्ट के नकारात्मक परिणाम क्यों दिखाई देते हैं?

जैसा कि लेख के शुरुआत में बताया गया है कि गर्भावस्था का पता लगाने के लिए यूरीन टेस्ट या ब्लड टेस्ट के माध्यम से बढ़े हुए एचसीजी हॉर्मोन का पता लगाया जाता है (5)। वहीं, क्रिप्टिक प्रेगनेंसी में एचसीजी का स्तर कम रहता है, इसलिए क्रिप्टिक प्रेगनेंसी में प्रेगनेंसी टेस्ट निगेटिव आता है (1)

अल्ट्रासाउंड में क्रिप्टिक प्रेगनेंसी का पता चलता है या नहीं, आइए अब हम यह भी समझ लेते हैं।

क्या अल्ट्रासाउंड से क्रिप्टिक प्रेगनेंसी का पता चल सकता है?

यह जरूर है कि गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में (22 हफ्ते से पहले) भ्रूण के विकसित न होने के कारण अल्ट्रासाउंड में क्रिप्टिक प्रेगनेंसी का पता न चले (6)। वहीं, भ्रूण के थोड़ा विकसित होने के बाद अल्ट्रासाउंड प्रक्रिया के माध्यम से क्रिप्टिक प्रेगनेंसी का पता लगाया जा सकता है (7)

आगे अब हम क्रिप्टिक प्रेगनेंसी में लेबर व डिलवरी से जुड़ी जानकारी देंगे।

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी में लेबर व डिलीवरी कैसे होती है?

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी में लेबर पेन सामान्य के मुकाबले थोड़ा कम होता है। इस कारण अक्सर महिलाएं प्रसव पीड़ा की स्थिति को ठीक से नहीं समझ पाती हैं। ऐसे में होने वाले बच्चे के लिए जोखिम बढ़ जाता है। वहीं, डिलीवरी की बात करें, तो क्रिप्टिक प्रेगनेंसी में भी डिलीवरी भी सामान्य की तरह ही होती है, बस फर्क इतना रहता है कि इस दौरान महिलाओं को मानसिक पीड़ा अधिक झेलनी पड़ती है (4)। यही वजह है कि क्रिप्टिक प्रेगनेंसी में अंतिम चरण के दौरान पेट में दर्द या ऐंठन होने की स्थिति में तुरंत इमरजेंसी में दिखाने की सलाह दी जाती है।

लेख के अगले भाग में हम भ्रूण पर क्रिप्टिक प्रेगनेंसी के प्रभाव को समझेंगे।

क्या क्रिप्टिक प्रेगनेंसी के कारण भ्रूण के विकास पर कोई प्रभाव पड़ता है?

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी का भ्रूण के विकास पर सीधे तौर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। हां, गर्भधारण की जानकारी न होने की स्थिति में आवश्यक खान-पान और संतुलित दिनचर्या की अनदेखी मां और बच्चे दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकती है (4)

अब हम यहां क्रिप्टिक प्रेगनेंसी में वजन बढ़ने और घटने की प्रक्रिया पर बात करेंगे।

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी के दौरान वजन बढ़ना/घटना

जैसा कि लेख में ऊपर बताया गया है कि सामान्य महिलाओं में गर्भावस्था के मुख्य लक्षणों में वजन का बढ़ना शामिल है। वहीं, क्रिप्टिक प्रेगनेंसी में वजन बढ़ने का पता नहीं चल पाता है (2)। इसका अर्थ यह है कि बच्चे का विकास सामान्य के मुकाबले काफी धीरे होता है और गर्भवती के वजन में आने वाला परिवर्तन (बढ़ना और घटना) धीमी गति से होता है। इस कारण वजन का पता नहीं चल पाता है।

आगे हम क्रिप्टिक प्रेगनेंसी से जुड़ी जटिलताओं पर बात करेंगे।

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी से होने वाली जटिलताएं

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी की सबसे बड़ी जटिलता यही है कि इसमें महिलाओं को अपनी गर्भावस्था का सही समय पर पता ही नहीं चल पाता है। इस कारण गर्भवती खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों को शामिल करने के प्रति गंभीर नहीं होती। इस कारण हाई बीपी और शुगर जैसी समस्याएं हो सकती हैं। साथ ही गर्भवती अपने बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर सचेत नहीं हो पाती (4)। ऐसे में सही पोषण न मिल पाने के कारण होने वाले बच्चे में कई जटिलताएं देखी जा सकती हैं, जो इस प्रकार हैं (2):

  • सांस लेने में तकलीफ।
  • स्तनपान में परेशानी।
  • हल्के दौरे पड़ सकते हैं।

अंत में हम क्रिप्टिक प्रेगनेंसी से बचाव के उपाय जानेंगे।

क्रिप्टिक प्रेगनेंसी से कैसे बचा जा सकता है?

निम्न बातों को ध्यान में रखकर क्रिप्टिक प्रेगनेंसी जैसी अवस्था से बचा जा सकता है (2)

  • गर्भावस्था से जुड़ी सभी जटिलताओं को दिमाग में रखते हुए एक लिस्ट बनाएं और अपनी जानकारी का प्रसार करें।
  • गर्भावस्था का छोटे से छोटा लक्षण दिखने पर उसे नजरअंदाज न करें और प्रारंभिक देखभाल की ओर कदम बढ़ाएं।
  • बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करें और गर्भावस्था की स्थिति की जांच (अल्ट्रासाउंड) कराएं, ताकि क्रिप्टिक प्रेगनेंसी को पहचान कर सही समय पर सुरक्षात्मक कदम बढ़ाए जा सकें।
  • वहीं, भ्रूण संबंधित कुछ जटिलताएं होने की स्थिति में डॉक्टर गर्भपात कराने की भी सलाह दे सकते हैं, ताकि भविष्य में होने वाली जटिलताओं के जोखिम को कम किया जा सके।
  • अविवाहित महिलाओं को क्रिप्टिक प्रेगनेंसी से बचाव के लिए इसके लक्षणों को ध्यान में जरूर रखना चाहिए।
  • पेट में या श्रोणि क्षेत्र में अधिक दर्द होने की स्थिति में बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और दर्द के कारण का पता लगा लेना चाहिए।
  • अनियमित मासिक चक्र वाली महिलाओं को भी डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और अपनी जांच करा लेना चाहिए, ताकि क्रिप्टिक प्रेगनेंसी की स्थिति से बचने में मदद मिल सके।

बेशक, क्रिप्टिक प्रेगनेंसी चिंताजनक विषय है, लेकिन सावधानी और सुरक्षा के साथ सही समय पर इसका पता लगाया जा सकता है। इस तरह समय रहते भ्रूण और गर्भवती के स्वास्थ्य के प्रति सुरक्षात्मक रवैया भी अपनाया जा सकता है। ऐसे में खुद के साथ-साथ गर्भावस्था से जुड़ी इस स्थिति से अन्य को भी अवगत कराएं, ताकि वो भी अपनी स्वस्थ गर्भावस्था का आनंद उठा सकें। उम्मीद है कि यह लेख आपको जरूर पसंद आया होगा। गर्भावस्था से जुड़ी ऐसी अन्य जानकारी हासिल करने के लिए पढ़ते रहें मॉमजंक्शन।

References

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