
Image: iStock
विषय सूची
यह तो हम सभी जानते हैं कि गर्भावस्था का सफर कई तरह के बदलाव व उतार-चढ़ावा से भरा होता है। इसी दौरान प्रेगनेंसी में होने वाली समस्याएं भी सामने आ ही जाती है। इनमें से अधिकतर समस्याएं कुछ ही समय बाद अपने आप ही ठीक हो जाती हैं। हालांकि, कुछ समस्याएं लापरवाही बरतने व कुछ स्थितियों में गंभीर भी हो सकती है। इसी विषय से जुड़ी जानकारी मॉमजंक्शन आपको इस लेख में दे रहा है। यहां आप गर्भावस्था के दौरान होने वाली कुछ सामान्य समस्याएं व उनका समाधान विस्तार से पढ़ सकते हैं।

शुरू करें गर्भावस्था के दौरान समस्याओं व समाधान से जुड़ा यह लेख।
यहां हम आपको 15 से भी अधिक उन स्वास्थ्य स्थितियों की जानकारी दे रहे हैं, जिनके लक्षण आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान देखे जा सकते हैं। साथ ही उनसे जुड़े समाधान व उपचार भी यहां विस्तार से बताए गए हैं। तो ये कुछ इस प्रकार हैं:
1. अवसाद
गर्भावस्था के दौरान अवसाद होना सामान्य माना जा सकता है। इसकी समस्या कभी भी हो सकती है, जो अपने आप ही कुछ ही दिनों में दूर भी हो सकती है। हालांकि, अगर डिप्रेशन के लक्षण हफ्तों या महीनों भर बने रहते हैं, तो इसे गंभीर मूड डिसऑर्डर भी माना जा सकता है। अवसाद होने पर गर्भवती महिला उदास हो सकती है, उनके मन में निराशा, बैचेनी, चिड़चिड़ापन, सोने में कठिनाई या अधिक नींद आने और भूख में बदलाव होने जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं (1)।
उपाय :
गर्भावस्था में अवसाद होने पर निम्नलिखित तरीकों से इसका समाधान किया जा सकता है, जो कुछ इस प्रकार हैं (2):
- व्यक्तिगत थेरेपी – अवसाद होने पर गर्भवती चाहें तो इस विषय में अपने वर्तमान डॉक्टर से बात कर सकती हैं। इसके अलावा, किसी साइकोलॉजिस्ट या सायकायट्रिस्ट से भी बातचीत कर सकती हैं।
- पारिवारिक थेरेपी – अधिकतर मामले पारिवारिक बातचीत से सुलझ सकते हैं। इसलिए, अवसाद के लक्षण महसूस करने पर गर्भवती को परिवार के करीबी सदस्यों से बात करनी चाहिए और जरूरत होने पर मनोचिकित्सक से थेरेपी भी ले सकती हैं।
- सोशल सपोर्ट – विभिन्न सोशल ग्रुप से जुड़कर भी गर्भवती अपने अवसाद की स्थिति से बाहर आ सकती हैं।
- एंटी-डिप्रेसेंट दवाइयां – कुछ स्थितियों में डॉक्टर गर्भवती महिला में डिप्रेशन का इलाज करने के लिए एंटी-डिप्रेसेंट दवाइयां दे सकते हैं (3)। हालांकि, गर्भवती बिना डॉक्टरी सलाह के किसी भी तरह की दवा न लें।
- पोषक आहार – विटामिन व मिनरल जैसे पोषक तत्वों की कमी भी अवसाद का जोखिम हो सकता है। ऐसे में गर्भवती महिला के आहार में विटामिन डी, फोलेट, आयरन, जिंक, फैट व सेलेनियम जैसे जरूरी पोषक तत्वों को शामिल करके अवसाद के लक्षणों को कम किया जा सकता है (4)।
2. कब्ज
गर्भावस्था में कब्ज की समस्या सामान्य हो सकती है। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (एनसीबीआई) की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 11 से 38 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं कब्ज का अनुभव करती हैं (5)। इसके पीछ की वजह इस दौरान होने वाले हार्मोनल बदलाव हो सकते हैं। इसके कारण गर्भवती महिला की पाचन क्रिया धीमी हो सकती है। इसके अलावा, रेक्टम पर गर्भाशय का दबाव पड़ने से भी गर्भावस्था में कब्ज की समस्या हो सकती है (6)।
उपाय :
गर्भावस्था में कब्ज की समस्या होने पर निम्नलिखित तरीकों से इसका समाधान किया जा सकता है, जो कुछ इस प्रकार हैं:
- फाइबर युक्त आहार – गर्भावस्था में फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन की सलाह दी जाती है। यह कब्ज की समस्या से बचाव करने में मदद कर सकता है (7)। इसके लिए फाइबर युक्त फल और सब्जियां, जैसे – आलूबुखारा, साबुत आनाज आदि का सेवन किया जा सकता है (6)।
- फाइबर सप्लीमेंट्स – अगर खाद्य पदार्थों के जरिए उचित मात्रा में फाइबर का पोषण नहीं मिलता है, तो गर्भवती डॉक्टरी सलाह पर फाइबर सप्लीमेंट्स लें सकती हैं (6)।
- पानी पिएं – रोजाना भरपूर मात्रा में पानी पिएं। कम से कम 8 से 9 गिलास पानी पीना भी कब्ज की समस्या के लिए उपयोगी हो सकता है (6)।
- दही का सेवन – दही का सेवन गर्भवतियों के लिए सुरक्षित हो सकता है। एनसीबीआई की शोध के अनुसार, प्रेगनेंसी में कब्ज के लक्षण कम करने के लिए दही का सेवन लाभकारी बताया गया है (8)। इससे कब्ज के लक्षणों में सुधार हो सकता है।
- लैक्सेटिव खाद्य पदार्थ – डॉक्टर की सलाह पर महिलाएं कब्ज के लिए लैक्सेटिव की खुराक भी ले सकती हैं। इसके लिए डॉक्टर लैक्सेटिव दवा या लैक्सेटिव गुणों वाले खाद्य पदार्थों के सेवन करने की सलाह दे सकते हैं (6)।
3. मॉर्निंग सिकनेस
गर्भावस्था के दौरान, खासकर पहली तिमाही में मतली व उल्टी यानी मॉर्निंग सिकनेस की समस्या सबसे अधिक हो सकती है (7)। हालांकि, कुछ अध्ययन यह भी बताते हैं कि गर्भावस्था में उल्टी और मतली आना एक अच्छा संकेत हो सकता है। यह समय पूर्व शिशु का जन्म, गर्भपात, जन्म के समय बच्चे का कम वजन होना जैसे जोखिम को कम कर सकता है (9)।
उपाय :
गर्भावस्था में मॉर्निंग सिकनेस होने पर इसका उपाय करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाएं जा सकते हैं, जैसे (7):
- सुबह का आहार लें – सुबह उठने पर सूखे ब्रेड या बिस्कुट जैसे आहार खाएं और अचानक से न उठें।
- थोड़ा-थोड़ा खाएं – एक बार में अधिक भोजन न करें। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में खाएं। साथ ही अधिक तैलीय या मसालेदार भोजन भी न खाएं।
- आराम करें – मार्निंग सिकनेस होने पर ज्यादा से ज्यादा आराम करें। खिड़कियां खोलकर रखें, ताकि ताजी हवा आ सके, कमरे में कोई सुगंधित डिफयूजर भी जला सकते हैं।
- अदरक व नींबू का सेवन – अदरक व नींबू से बनी चाय, खाद्य या अन्य पेय पदार्थों का सेवन कर सकते हैं। यह मतली से राहत दिला सकता है।
- एक्यूप्रेशर – एनसीबीआई की शोध के अनुसार, एक्यूप्रेशर करने से भी गर्भवस्था में मॉर्निंग सिकनेस की समस्या कम हो सकती है (10)। हालांकि, ऐसा डॉक्टर से पूछने के बाद किसी एक्स्पर्ट की देखरेख में ही कराएं।
4. थकान होना
गर्भावस्था के दौरान थकान होना भी आम होता है। ज्यादातर महिलाएं गर्भावस्था के शुरूआती महीनों और आखिरी चरण में शारीरिक तौर पर अधिक थकान महसूस कर सकती हैं (6)। इसके पीछे की वजह हो रहे हार्मोनल व शारीरिक बदलाव को माना जा सकता है (11)।
उपाय :
गर्भावस्था में थकान होने पर निम्नलिखित उपाय करके इससे राहत मिल सकती है, जैसे (6) (12) :
- एक्सरसाइज करें – नियमित रूप से एक्सरसाइज करने से थकान की समस्या को कम किया जा सकता है। हालांकि, ध्यान रहे व्यायाम करने से पहले इस बारे में डॉक्टर से परामर्श जरूर लें। अगर डॉक्टर कुछ खास व्यायाम करने की सलाह देते हैं तो उन्हें रूटीन में शामिल कर सकते हैं।
- आराम करें – शारीरिक व मानसिक रूप से उचित आराम करें। इसके लिए योग व मेडिटेशन का सहारा लिया जा सकता है। ध्यान रहे गर्भावस्था में योग करने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।
- अच्छा आहार खाएं – आयरन जैसे पोषक तत्वों की कमी भी थकान का कारण हो सकती है, इसलिए अच्छा व उचित पोषक आहार खाएं। इससे थकान के लक्षण दूर किए जा सकते हैं। साथ ही भरपूर मात्रा में पानी पिएं।
- झपकी लें – गर्भावस्था में थकान महसूस होने की एक वजह अधूरी नींद भी हो सकती है (13)। ऐसे में दिन में थोड़े-थोड़ें अंतराल पर कुछ देर के लिए झपकी लेने से भी गर्भावस्था में थकान की समस्या दूर की जा सकती है।
5. नाक व मसूड़ों से खून आना या सूजन होना
कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान नाक से खून या मसूड़ों से खून आने की भी समस्या हो सकती है। ऐसा नाक और मसूड़ों के ऊतकों के सूख जाने के कारण हो सकता है। इससे रक्त वाहिकाएं फैल सकती हैं और उनसे खून बहने की समस्या हो सकती है (6)। इसका एक अन्य कारण गर्भावस्था में होने वाले हार्मोनल बदलाव को भी माना जा सकता है (14)। इसके अलावा, गर्भावस्था में मसूड़ों में सूजन की भी समस्या हो सकती है (15)।
उपाय :
अगर गर्भावस्था में नाक व मसूड़ों से खून आने की समस्या होती है, तो इसके लिए निम्नलिखित तरीकों से इसका समाधान किया जा सकता है (7) (14) (15)।
- खुद को हाईड्रेट रखें – तरल पदार्थ पीते रहें, इससे शरीर हाइड्रेट रहेगा और मसूड़ों के ऊतकों के सूखने का जोखिम कम हो सकता है। इसलिए पानी व फलों के जूस का सेवन कर सकते हैं।
- पोषक तत्व युक्त खाद्य पदार्थ – विटामिन सी युक्त संतरे जैसे फल व विटामिन बी12 युक्त फलों के रस व खाद्यों का सेवन कर सकते हैं।
- मुलायम ब्रश – मसूड़ों से खून के बहाव को कम करने के लिए मुलायम ब्रेसल्स वाले टूथब्रश का इस्तेमाल करें।
- ओरल हेल्थ – मसूडो़ं के साथ-साथ दांतों की उचित स्वच्छता का भी ध्यान रखना चाहिए। चाहें तो डेंटिस्ट से भी चेकअप कराते रहें।
- ह्यूमिडिफायर – यह एक तरह का उपकरण होता है, जो नाक या साइनस का सूखापन कम कर सकता है। यह कमरे में नमी को बरकरार रख सकता है। ऐसे में डॉक्टर से सलाह के बाद गर्भवती इसे कमरे में लगवा सकती हैं।
6. मूड स्विंग या भावनात्मक बदलाव होना
गर्भावस्था के दौरान कई तरह के भावनात्मक बदलाव व मूड स्विंग की समस्या हो सकती है। गर्भवती के मन में शिशु के स्वास्थ्य से लेकर, मां बनने से जुड़ी जिम्मेदारियों को लेकर उलझन हो सकती है। इस दौरान उनमें कभी भी गुस्सा, खुशी, डर, उदासी और मन में अफसोस की भावना पनप सकती है। इसके पीछे इस दौरान होने वाले हार्मोनल बदलावों को एक कारण माना जा सकता है (16)।
उपाय :
गर्भावस्था में अगर कोई महिला अपने भावनाओं में बदलाव या मन में उलझन महसूस करती है, तो निम्नलिखित तरीकों से इसका समाधान कर सकती हैं, जैसे (17) :
- अच्छा खाएं – अच्छा और पौष्टिक आहार मूड स्विंग के लक्षण कम कर सकता है।
- कुछ नया करें – मूड स्विंग से बचने के लिए खुद के लिए समय निकालकर कुछ नया करें। इसके लिए कोई नया शौक या अन्य गतिविधियां कर सकती हैं, जिससे मन को खुशी मिले।
- एक्सरसाइज करें – नियमित रूप से एक्सरसाइज करें। चाहें, तो नियमित रूप से सुबह की सैर पर भी जा सकती हैं। इससे भी मूड को अच्छा किया जा सकता है। ध्यान रहे व्यायाम करने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।
- नींद लें – हर दिन उचित घंटों की नींद लें। कई बार नींद की कमी भी चिड़चिड़ाहट या मूड में बदलाव का कारण बन सकता है। इसलिए नींद पूरी करें।
- परिवार का साथ – घर व बाहर के कामों में परिवार व दोस्तों की मदद लें। उनके साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताएं।
- मसाज थेरेपी – एनसीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, गर्भावस्था में मसाज थेरेपी लेना मूड स्विंग्स की समस्या को ठीक कर सकता है। मसाज से चिंता दूर करने व नींद में सुधार हो सकता है, जिससे कुछ हद तक मूड स्विंग के लक्षण कम हो सकते हैं (18)। मसाज थेरेपी में महिला सिर व गर्दन की थेरेपी ले सकती हैं। हालांकि, इस विषय में पहले डॉक्टर की राय लें। जब एक बार डॉक्टर सलाह दे दें तो किसी एक्स्पर्ट द्वारा ही मसाज थेरेपी लें।
7. सीने में जलन
गर्भावस्था में हार्टबर्न या सीने में जलन की समस्या आम हो सकती है, क्योंकि जैसे-जैसे गर्भ में शिशु बढ़ता है, गर्भवती के पेट पर अधिक दबाव पड़ सकता है (7)। आंकड़ों के अनुसार, लगभग 17 से 45 प्रतिशत महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान सीने में जलन की परेशानी होती है (19)। इसका एक कारण भोजन का देरी से पचना भी हो सकता है (6)।
उपाय :
गर्भावस्था में सीने में जलन की समस्या का उपाय करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपना सकती हैं, जैसे (6) (19) :
- कम भोजना करना – एक बार में ज्यादा न खाएं, बल्कि कम मात्रा में खाएं। हो सके तो हर कुछ घंटे में हल्का-फुल्का खाते रहें।
- परहेज करें – मसालेदार और तैलीय खाद्य आहारों से परहेज करें। साथ ही कैफीन व वसायुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन भी कम करें।
- सोने से पहले ध्यान रखें – सोने से पहले अधिक मात्रा में पानी या अन्य पेय पदार्थ न पिएं।
- सोने की स्थिति पर ध्यान दें – भोजन करने के तुरंत बाद सीधा होकर पीठ के बल न लेंटे। इससे खाने को पचने में परेशानी हो सकती है। इसके साथ ही सोने के दो से तीन घंटे पहले खाना खाएं और खाने के बाद थोड़ी देर वॉक करें।
- एंटासिड का सेवन – गर्भावस्था के दौरान एंटासिड का सेवन किया जा सकता है। यह सीने में जलन करने वाले एसिड को बेअसर करके इससे राहत दिला सकता है। हालांकि, बेहतर है इसके सेवन से पहले डॉक्टरी सलाह लें।
8. सिर दर्द
गर्भावस्था के दौरान, जैसे-जैसे गर्भ में शिशु बढ़ता है, वैसे-वैसे गर्भवती के शरीर में हार्मोन भी बदलते हैं। यही वजह है कि यह कई तरह के शारीरिक बदलावों का कारण हो सकता है। इसकी वजह से गर्भावस्था में सिर दर्द होना भी सामान्य समस्या हो सकती है। इसके अलावा, कुछ स्थितियों में गर्भावस्था में सिर दर्द होना प्रीक्लेम्पसिया यानी गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप का संकेत भी हो सकता है (20)। इतना ही नहीं, प्रसव के बाद भी सिर दर्द के लक्षण कुछ महिलाओं में बने रह सकते हैं (21)।
उपाय :
गर्भावस्था में अगर सिर दर्द की समस्या होती है, तो महिला समाधान करने के लिए निम्नलिखित उपाय कर सकती हैं:
- नो-ड्रग थेरेपी – गर्भावस्था में होने वाले माइग्रेन या सिरदर्द का इलाज करने में नो-ड्रग थेरेपी कारगार माना जा सकता है। इस थेरेपी के तहत सिर की मसाज करना, भरपूर नींद लेना, आइसपैक का इस्तेमाल करना व शरीर की कई गतिविधियों को मापने वाली बायोफीडबैक की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है (22)।
- योग करना – प्रेगनेंसी में सिर दर्द की समस्या दूर करने करने के लिए योग भी प्रभावकारी माना गया है (23)। हालांकि, गर्भावस्था में योग करने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर लें। साथ ही अगर पहली बार योग करने जा रही हैं, तो योग विशेषज्ञ की देखरेख में ही करें।
- अदरक – माइग्रेन या सिर दर्द को एक तंत्रिका संबंधी विकार के रूप में माना जाता है। वहीं, आयुर्वेद और तिब्ती उपचार में अदरक को इन विकारों के उपचार में लाभकारी माना गया है (24)। वहीं, लेख में हम यह पहले ही बता चुके हैं कि गर्भावस्था में अदरक का सेवन करना सुरक्षित हो सकता है। ऐसे में गर्भावस्था में सिर दर्द होने पर अदरक से बनी चाय का सेवना करना लाभकारी हो सकता है।
- कैमौमाइल तेल से सिर की मालिश – पारंपरिक तौर पर सिरदर्द के उपचार में कैमोमाइल तेल से सिर की मालिश करना लाभकारी माना जाता है। इसके पीछे इसका न्यूरोप्रोटेक्टिव प्रभाव (Neuroprotective) लाभकारी माना जा सकता है (25)। ऐसे में गर्भावस्था में सिर दर्द होने पर महिलाएं कैमोमाइल के तेल से सिर की मसाज कर सकती हैं।
9. हाथ-पैरों का सुन्न होना
गर्भावस्था के दौरान हाथों में सुन्नता होना भी सामान्य स्थिति हो सकती है। इसके होने पर हाथों में झुनझुनी, जलन, दर्द सूजन का अनुभव हो सकता है। इसके अलावा, गर्भावस्था में 21 से 62 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं कार्पल टनल सिंड्रोम का भी अनुभव करती हैं (26)। यह कलाई में मौजूद तंत्रिका से जुड़ी समस्या है। गर्भावस्था में जब शरीर में अधिक तरल जमने लगता है तब भी यह समस्या हो सकती है (27)।
इसके अलावा, बढ़ता हुआ गर्भाशय पैरों की नसों पर दबाव डाल सकता है, जिसके कारण हाथों-पैरों व उनकी उंगलियों में सुन्नता और झुनझुनी हो सकती है। यह बेहद सामान्य होता है, जो बच्चे के जन्म के कुछ समय बाद अपने आप ही दूर भी हो सकता है। आमतौर पर, सुबह उठने पर इसका अनुभव अधिक हो सकता है (20)।
उपाय :
निम्नलिखित तरीकों से गर्भावस्था में सुन्नपन या झुनझुनी दूर की जा सकती है:
- ब्रेस पहनना – रात में सोते समय हाथों में ब्रेस पहनकर सो सकती हैं। इसके लिए डॉक्टर की सलाह पर ब्रेस खरीद सकती हैं (20)। यह पट्टियों जैसा एक तरह का उपकरण होता है, जो हाथों को सहारा देने में मदद कर सकता है।
- विटामिन बी12 – शरीर में विटामिन बी12 की कमी भी सुन्नपन का कारण हो सकती है (28)। ऐसे में आहार में विटामिन बी12 युक्त खाद्य पदार्थों को भी शामिल कर सकते हैं।
10. पैरों में दर्द
बढ़ता शारीरिक भार गर्भावस्था में पैरों में दर्द का कारण हो सकता है। इसका अनुभव गर्भावस्था के आखिरी महीनों में अधिक हो सकता है। हालांकि, कुछ मामलों में यह ब्लड क्लॉट के कारण भी हो सकता है, जिस कारण पैरों में दर्द को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए और गर्भवती को इस बारे में अपने डॉक्टर को बताना चाहिए (20)। वहीं, एनसीबीआई के अनुसार, गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के दौर में इसका अनुभव होना सामान्य हो सकता है (29)। हल्के-फुल्के पैर दर्द की समस्या में नीचे बताए गए उपाय किए जा सकते हैं। वहीं, इन उपायों के बाद भी अगर पैर दर्द न ठीक हो तो डॉक्टर से मिलकर इस बारे में जरूर बताएं।
उपाय :
निम्नलिखित तरीकों से गर्भावस्था में होने वाले पैर दर्द को कम किया जा सकता है (20) (30)। ये उपाय कुछ इस प्रकार हैं:
- स्ट्रेच करें – सोने से पहले पैरों को थोड़ा-बहुत स्ट्रेच करें। इससे पैरों की ऐंठन कम हो सकती है।
- सावधान रहें – गर्भावस्था में व्यायाम करते समय या कुछ उठते समय सावधानी बरतें।
- आराम करें – पैरों में ऐंठन महसूस होने पर अधिक से अधिक आराम करें।
- बर्फ की सिकाई – जब भी पैरों में दर्द महसूस हो, तो प्रभावित हिस्से पर कुछ देर के लिए बर्फ से सिकाई करें।
- कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ – कैल्शियम की कमी के कारण भी गर्भावस्था में पैरों में दर्द हो सकता है। ऐसे में उचित मात्रा में कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करना उपयोगी हो सकता है (31)।
11. योनि स्राव
गर्भवस्था में योनि स्राव की समस्या भी हो सकती है। हालांकि, अगर इस दौरान तेज दुर्गंध आने, हरा रंग का स्राव होने, खुजली होने या दर्द होने की समस्या होती है, तो डॉक्टर से संपर्क जरूर करें (6)। ऐसा बैक्टीरियल वेजिनोसिस, वजायनल ट्राइकोमोनिएसिस या कैंडिडाइसिस के कारण हो सकता है, जो यौन संचारित संक्रमण के कारण भी हो सकता है। इसके अलावा, त्वचा रोग या एलर्जी की प्रतिक्रियाओं के कारण भी ऐसा हो सकता है (26)।
उपाय :
इस बारे में डॉक्टर को तो जरूर बताएं। साथ ही साथ गर्भावस्था में कुछ बातों का ध्यान भी जरूर रखें, ताकि योनि स्राव से बचाव किया जा सके। ये कुछ इस प्रकार हैं (32)।
- साबुन न लगाएं – गर्भावस्था में डिस्चार्ज होना साामन्य है, इसलिए गुप्तांग में साबुन या किसी तरह के कॉस्मेटिक का प्रयोग न करें। इनमें केमिकल होते हैं, जो इसकी समस्या बढ़ा सकते हैं।
- गुनगुना पानी – गुप्तांग को साफ करने के लिए गुनगुने पानी का उपयोग किया जा सकता है। ध्यान रखें कि गर्भावस्था में नहाने के लिए गर्म पानी का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक ही रखना सुरक्षित माना जा सकता है (33)। ऐसे में गर्भावस्था में गुप्तांग में गुनगुने पानी के इस्तेमाल से पहले डॉक्टरी सलाह जरूर लें।
- बार-बार न धोएं – गुप्तांग को बार-बार धोने से बचें। शोध यह बताते हैं कि बार-बार गुप्तांग की सफाई करने से बैक्टीरियल वेजिनोसिस व उसके कारण योनि में होने वाले संक्रमण का जोखिम बढ़ा सकता है (34)।
- साफ-सफाई रखें – गर्भावस्था के दौरान गुप्तांग की सफाई अच्छे से करें। साथ ही, हमेशा साफ-सुथरे बाथरूम का उपयोग करें।
- एंटिफंगल क्रीम – डॉक्टरी सलाह पर एंटी फंगल क्रीम का उपयोग भी कर सकते हैं। ध्यान रहे इसके सही तरीके से उपयोग के बारे में डॉक्टर से पूरी जानकारी लें।
12. पेशाब की समस्या
गर्भावस्था की शुरुआती चरणों में बार-बार पेशाब जाने की समस्या हो सकती है। ज्यादातर महिलाएं गर्भवती होने के पहले कुछ हफ्तों के अंदर ही इसका अनुभव कर सकती हैं (35) हालांकि, इस दौरान पेशाब की मात्रा कम हो सकती है। ऐसा बढ़ते गर्भाशय के कारण हो सकता है। इसकी वजह से गर्भावस्था के दौरान प्यास लगने की समस्या भी अधिक हो सकती है। हालांकि, अगर पेशाब करते समय दर्द या मूत्र के गंध या रंग में परिवर्तन नजर आए, तो डॉक्टर से संपर्क करें। ये मूत्राशय के संक्रमण के लक्षण हो सकते हैं (6)।
उपाय :
आमतौर पर प्रसव के बाद यह समस्या अपने आप ठीक हो सकती है (6)। हालांकि, गर्भावस्था में कुछ बातों का ध्यान रखकर पेशाब से जुड़ी समस्या को कम किया जा सकता है, जो निम्नलिखित हैं।
- कीगल एक्सरसाइज – अगर गर्भावस्था में कभी-कभी खांसने या छींकने पर कुछ मात्रा में पेशाब निकल जाता है, तो पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए कीगल एक्सरसाइज कर सकती हैं (6)। हालांकि, ध्यान रहे इसे डॉक्टर से परामर्श लेने के बाद ही करें और किसी एक्सपर्ट की देखरेख में ही करें।
- सोने से पहले तरल पदार्थ का कम सेवन – सोने से पहले ज्यादा पानी या अन्य पेय पदार्थों का सेवन कम करें। सोने से पहले अधिक पानी या पेय पदार्थ पीने से बार-बार पेशाब लगने की समस्या हो सकती है।
- करवट लेकर सोएं – करवट लेकर सोने से गर्भाशय पर दबाव कम पड़ सकता है, जिससे पेशाब लगने का अनुभव भी कम हो सकता है।
13. सांस से जुड़ी परेशानी
गर्भावस्था के शुरुआती चरणों में होने वाले हॉर्मोनल बदलाव के कारण सांस से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। इसके कारण गर्भवती को सांस लेने में तकलीफ महसूस हो सकती है। सांसों की दर सामान्य से अधिक हो सकती है। यह गर्भवस्था के अंतिम चरण में भी हो सकता है, क्योंकि शिशु का दबाव बढ़ने लगता है (6)। दरअसल, इसके बाद के चरणों में गर्भाशय बढ़ने की वजह से डायफ्राम पर दबाव पड़ता है, जिस वजह से भी सांस लेने में कठिनाई हो सकती हैं। ध्यान रखें कि सांस लेते समय दर्द होने पर, दिल की गति तेज होने पर या अत्यधिक थकान महसूस होने पर डॉक्टर से संपर्क करें (35)।
उपाय :
गर्भावस्था में सांस से जुड़ी परेशानी होने पर गर्भवती कुछ बातों का ध्यान रख सकती हैं, जो उनकी इस समस्या का समाधान करने में मददगार हो सकते हैं, जैसे (6) (35) :
- व्यायाम करना – नियमित रूप से ब्रीदिंग व्यायाम किए जा सकते हैं। इससे सांस से जुड़ी तकलीफ को ठीक करने में मदद मिल सकती है। ध्यान रहे गर्भावस्था में कोई भी व्यायाम या योग करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
- बैठने की अवस्था – बैठते समय शरीर की पोजिशन सीधी रखें।
- तकिये का इस्तेमाल – सोते व बैठते समय तकिये से सहारा लें।
- आराम करें – सांस की कमी महसूस होने पर आराम करें।
- धीरे चलें – चलते समय या वॉक करते समय धीमी गति से चलें।
नोट: वहीं, अगर परेशानी ज्यादा हो तो डॉक्टर को इस बारे में जरूर बताएं।
14. सूजन और वैरिकोज वेन्स होना
प्रसव का समय करीब आने पर सूजन और वैरिकोज वेन्स यानी ऊभरी हुई नसों की समस्या समान्य हो सकती है। ऐसा बढ़े हुए गर्भाशय के कारण नसों पर दबाव पड़ने से हो सकता है। इसके कारण पैरों व योनि के आस-पास की नसों में सूजन हो सकती है, जो ऊभरी हुई नजर आ सकती हैं (6)। इसके कारण पैरों में सूजन (एडिमा) भी हो सकता है, जिससे पैरों में दर्द, भारीपन, ऐंठन जैसी समस्याएं भी हो सकती है (35)।
उपाय :
गर्भावस्था में सूजन या वैरिकोज वेन्स होने पर निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं (6) (35)।
- पैरों के नीचे तकिया लगाएं – जब भी लेटें तो कुछ मिनट के लिए पैरों को ऊपर की तरफ कर सकते हैं। इसके लिए पैरे के नीचे तकिए का सहारा लिया जा सकता है।
- करवट लें – सोते समय दाएं या बाईं तरफ करवट लेकर सोएं। इससे शरीर अधिक आराम की अवस्था में होगा।
- सपोर्ट स्टॉकिंग्स पहनें – अच्छी गुणवत्ता व भरोसेमंद सपोर्ट स्टॉकिंग्स पहन सकती हैं। मन में संशय हो तो इस बारे में डॉक्टर से परामर्श ले सकते हैं।
- नमक का सेवन कम करें – खाद्य आहार में नमक युक्त खाद्य पदार्थों को सीमित करें, क्योंकि नमक का अधिक स्तर शरीर में पानी की अधिक मात्रा बढ़ा सकता है।
- मालिश करें – मालिश करने से सूजन को कम करने में मदद मिल सकती है। ध्यान रहे हल्के हाथों से ही मालिश करें। अगर मन में दुविधा हो तो इस बारे में एक बार अपने डॉक्टर से सलाह लें।
15. बवासीर
एनसीबीआई के अनुसार, गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में बवासीर की समस्या अधिक हो सकती है (36)। दरअसल, गर्भावस्था में मलाशय के आस-पास की नसों में भी सूजन की समस्या हो सकती है, जिस वजह से गर्भावस्था में बवासीर की समस्या हो सकती है (6)। आंकड़ों के अनुसार, लगभग 8 प्रतिशत महिलाएं गर्भावस्था के आखिरी तिमाही में इसका अनुभव करती हैं (26)। इसके अलावा, कब्ज होने या बच्चे के सिर से बढ़ते दबाव के कारण भी बवासीर हो सकता है (35)।
उपाय :
आमतौर पर शिशु के जन्म के बाद बवासीर की समस्या अपने आप ठीक भी सकती है। इसके अलावा, अगर बवासीर होने से खुजली होने की समस्या होती है, तो कुछ समाधान किए जा सकते हैं, जो इससे थोड़ी र

Community Experiences
Join the conversation and become a part of our vibrant community! Share your stories, experiences, and insights to connect with like-minded individuals.