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सभी माता-पिता अपने बड़े होते शिशु के एक-एक पल को जीना चाहते हैं। उनका प्रयास रहता है कि वो अपने बच्चे में होने वाले छोटे-छोटे बदलावों को महसूस करें। उनकी खुशी में शामिल हों। वहीं, बच्चे के विकास को लेकर भी उनके मन में कई तरह के सवाल पनपते रहते हैं। ये सवाल तब और बड़े हो जाते हैं, जब बच्चा सातवें महीने में कदम रखता है।

मॉमजंक्शन के इस लेख में हम सात महीने के शिशु से जुड़े कुछ बदलाव और विकास के संबंध में कुछ जानकारियां आपके साथ शेयर करेंगे। सबसे पहले हम बात करेंगे 7 महीने के बच्चे के वजन और हाइट के बारे में।

7 महीने के बच्चे का वजन और हाइट कितनी होनी चाहिए?

अपने शिशु के वजन और लंबाई को लेकर सभी माता-पिता चिंतित रहते हैं। उनके मन में हमेशा यह सवाल रहता है कि क्या उनके बच्चे का विकास सही प्रकार से हो रहा है या नहीं। आंकड़ों की बात करें, तो 7 महीने के बेबी बॉय का औसतन वजन 7.1 किलो से 9.3 किलो और लंबाई 65.3 से 71.3 सेमी तक हो सकती है। वहीं, बेबी गर्ल की औसतन लंबाई 63.2 से 69.4 सेमी और वजन 6.5 से 8.5 किलो के बीच हो सकता है (1) (2)

नोट :

  • 7 माह के बच्चे से संबंधित ऊपर दिए गए आंकड़े औसत गणना पर आधारित हैं। सामान्य रूप से इनमें बदलाव पाया जा सकता है। ध्यान रहे, आंकड़ों में बदलाव आने का मतलब यह बिल्कुल नहीं कि बच्चे का विकास ठीक नहीं हो रहा है।
  • अगर आपको लगता है कि बच्चे का वजन और लंबाई कम या ज्यादा है, तो एक बार चिकित्सक से परामर्श कर लें।

लेख में आगे हम बच्चे के विकास से संबंधित कुछ अन्य पहलुओं पर चर्चा करेंगे।

7 महीने के बच्चे के विकास के माइल्सटोन क्या हैं?

जन्म के बाद से बच्चे में विकास प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस प्रक्रिया में बच्चा हर दिन नए बदलाव के साथ आगे बढ़ता है। यहां हम 7 महीने के बच्चे में होने वाले विकास के संबंध में जरूरी माइलस्टोन के बारे में जानेंगे (3)

मानसिक विकास

मानसिक विकास की बात करें, तो 7 माह के दौरान बच्चे में कई परिवर्तन देखे जाते हैं। ये परिवर्तन इस बात की ओर इशारा करते हैं कि बच्चा विकास की ओर धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहा है। आइए, इन परिवर्तनों को हम विस्तार से जानते हैं।

  1. बोलने का प्रयास : उम्र के इस पड़ाव में बच्चे लोगों से बात करने की कोशिश करते हैं। दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए तरह-तरह की आवाजें निकालते हैं। खासकर दो अक्षरों से बनने वाले शब्दों को बोलने लगते हैं। वहीं, जिन शब्दों को वो बोल पाने में समर्थ नहीं होते, उन्हें बुदबुदा कर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं।
  1. जिज्ञासु : 7वें महीने में बच्चे के अंदर चीजों को जानने की रुचि पैदा होती है। इस दौरान बच्चा हर नई या पुरानी चीज को छूकर या चाटकर उसकी बनावट, आकार व स्वाद आदि को जानने का प्रयास करता है।
  1. निर्देशों को समझना : इस दौरान बच्चे इशारों या फिर निर्देशों को समझने और मानने लगते हैं। अगर माता-पिता नाराजगी में ‘न’ या ‘नहीं’ बोलते हैं, तो बच्चा रुक कर उनके चेहरे के हाव-भाव को समझने की कोशिश करता है (4)
  1. चीजों के ट्रैक करना : 7 माह के बच्चे वस्तुओं को ट्रैक करने में सक्षम हो जाते हैं। सामने किसी आकर्षक वस्तु के आने पर उसे गौर से देखते हैं। दिशा बदलने की स्थिति में भी वस्तु को एक टक निहारते रहते हैं (5) (6)
  1. वस्तुओं के महत्व को समझना : इस दौरान बच्चे में कुछ खास चीजों (खिलौने आदि) के प्रति लगाव बढ़ जाता है। वो रो कर या चीख कर उन चीजों को हासिल करने का प्रयास करते हैं। 7वें माह में बच्चों में देखी जाने वाली यह आदत प्रदर्शित करती है कि उनमें वस्तुओं के महत्व को समझने की योग्यता का विकास हो जाता है ।

शारीरिक विकास

आइए, अब 7 माह के बच्चे में होने वाले शारीरिक विकास की बात करते हैं।

  1. बिना सहारे के बैठना : 7 माह का शिशु बिना सहारे के बैठना सीखने लगता है। इससे पूर्व तक शिशु को बैठने के लिए सहारे की जरूरत पड़ती है, लेकिन सातवें माह में आने के बाद बच्चा अपने कमर से ऊपर के हिस्से को नियंत्रित करना सीख जाता है।
  1. ध्वनि की ओर देखना : उम्र के इस पड़ाव में बच्चा ताली बजाने या आवाज करने पर ध्वनि की दिशा में देखने की कोशिश करता है। उसमें ध्वनि कहां से आ रही है, ये जानने की जिज्ञासा विकसित हो जाती है।
    1. हाथों की पकड़ : इंडेक्स फिंगर और अंगूठे की मदद से 7 माह के बच्चे चीजों को पकड़ना व उठाना सीख जाते हैं। यह पकड़ उन्हें किसी भी चीज को खाने में भी मदद करती है (8)।
  1. चबाने का प्रयास करना : इस माह के शिशु भोजन को चबाना भी सीखने लगते हैं। दरअसल, 6 से 12 महीने के बीच शिशु को दांत भी आने लगते हैं। वहीं, इसके साथ ही वह पाचन क्रिया की पहली प्रक्रिया को विकसित कर लेते हैं (8)।
  1. वस्तुओं को एक हाथ से दूसरे हाथ में लेना : परिवर्तन और विकास के इस दौर में 7 माह के बच्चे किसी भी वस्तु को एक हाथ से दूसरे हाथ में लेना शुरू कर देते हैं (8)।
  1. खड़े होने का प्रयास : 7 माह के बच्चों को सीधा पकड़ने पर वो किसी ठोस सतह के संपर्क में आते ही पैरों को जमाने का प्रयास करते हैं। इससे वो खड़े होने का प्रयास करते हैं (6)
  1. रात को देर तक सोना : जन्म के बाद बच्चे दिन में ज्यादा और रात को कम सोते हैं। वहीं, 7 माह के होते-होते रात को देर तक सोने में सक्षम हो जाते हैं। इतने माह के बच्चे 24 घंटे में से 11-16 घंटे की नींद पूरी करते हैं (9)
  1. ऊंचाई को समझना : 7वें माह में कदम रखने के साथ बच्चे की आंखों की मांसपेशियां सही तरह से काम करने लगती हैं। इस कारण बच्चे छोटी-छोटी वस्तुओं पर भी ध्यान केन्द्रित कर पाने में सफल हो जाते हैं। साथ ही उनमें गहराई को भांपने की क्षमता भी विकसित हो जाती है। इस कारण से उनमें ऊंचाई से गिरने का डर पैदा हो जाता है (3)

सामाजिक और भावनात्मक विकास

शारीरिक और मानसिक विकास के बाद अब बात करते हैं सामाजिक और भावनात्मक विकास की (3)

  1. अपनों से दूरी का दुख : बच्चे का सबसे ज्यादा लगाव उसके माता-पिता से होता है। इसलिए, वह उनसे जरा भी दूरी बर्दाश्त नहीं कर पाता। जन्म के कुछ महीनों बाद वह रोकर अपनों से अलग होने की भावना को व्यक्त करता है, लेकिन सातवें महीने में कदम रखते ही माता-पिता से दूर होने की स्थिति में उसके चेहरे पर दुख साफ तौर पर देखा जा सकता है।
  1. अजनबियों से असहज : सातवें माह में बच्चा इतना समझदार हो जाता है कि वह अपने और अनजान लोगों में फर्क समझने लगता है। यही कारण है कि वह अपनों को देखकर खिलखिला कर हंस देता है। वहीं, अजनबियों के नजदीक आने पर उनसे दूर होने की कोशिश करता है।
  1. परिचितों को देखकर खुशी : उम्र के इस दौर में बच्चा अपनी भावनाएं बेहतर तरीके से व्यक्त करना सीख जाता है। माता-पिता या ऐसे लोगों को देख वह खुशी व्यक्त करता है, जिन्हें वह अच्छी तरह से जानता है। यही कारण है कि बच्चा जान-पहचान वाले लोगों के पास जाने से नहीं हिचकता और दोनों हाथ फैलाकर उनका स्वागत करता है।
  1. सहानुभूति के संकेत दिखाना : इस दौरान बच्चा सहानुभूति का भाव प्रदर्शित करने लगता है। बच्चा अपने आसपास के लोगों के चेहरे के भावों को देखकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। इसी कारण है कि बच्चा माता-पिता को हंसता देखकर मुस्कुरा देता है। वहीं, अगर उन्हें दुखी देखता है, तो रोकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने की कोशिश करता है।

आगे लेख में हम जानेंगे सातवें माह में होने वाले टीकाकरण के बारे में।

7 महीने के बच्चे को कौन-कौन से टीके लगते हैं?

शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। इसलिए, उसे गंभीर बीमारियां होने का खतरा रहता है। इन बीमारियों से बचाने के लिए उसे टीकाकरण की जरूरत होती है। आईएपी 2025 के अनुसार सातवें माह में लगने वाले कुछ इस प्रकार हैं   (10)

  • इन्फ्लूएंजा 2 : इस माह में बच्चे को केवल इन्फ्लूएंजा 2 की खुराक दी जा सकती है। इस टीके की मदद से बच्चे को इन्फ्लूएंजा वायरस (जिसे आम भाषा में फ्लू कहा जाता है) से बचाया जा सकता है। वहीं टाइफाइड का टिका बच्चे को 7 महीने से 1 वर्ष के होने के बीच में कभी भी दिया जा सकता है।

वैसे तो बच्चे के जन्म के बाद माता-पिता को टीकाकरण चार्ट से जुड़ी पूरी जानकारी दे दी जाती हैं, लेकिन इसके बावजूद अगर आपको इसे समझने में कोई परेशानी हो, तो शिशु विशेषज्ञ से सलाह जरूर करें।

आइए, अब बच्चे की खुराक के बारे में बात करते हैं।

7 महीने के बच्चे के लिए कितना दूध आवश्यक है?

जन्म के बाद बच्चे का पाचन तंत्र उतना मजबूत नहीं होता कि वह ठोस आहार पचा सके। इसलिए, बच्चा 6 महीने तक सिर्फ मां के दूध पर ही निर्भर रहता है (11)। वहीं, कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं, जो किसी कारणवश मां का दूध पीने से वंचित रह जाते हैं। ऐसे बच्चे मार्केट में मिलने वाले फॉर्मूला दूध पर निर्भर रहते हैं। दूसरी तरफ, 7 माह का होने के बाद बेहतर विकास के लिए बच्चे को दूध के साथ ठोस आहार भी देना जरूरी हो जाता है। ऐसे में कई माता-पिता जानना चाहते हैं कि इस दौरान उनके बच्चे को कितना दूध दिया जाना चाहिए।

  • मां का दूध– 7 माह के बच्चे को दिन में 3 से 5 बार में 946 ml दूध दिया जा सकता है, लेकिन यह शिशु के स्वास्थ्य और उसकी पाचन क्षमता पर भी निर्भर करता है (12)
  • फॉर्मूला दूध– अगर बच्चा फॉर्मूला दूध पर निर्भर है, तो उसे 3 से 5 बार में 946 ml दूध दिया जा सकता है (12)

7 महीने के बच्चे के लिए कितना खाना आवश्यक है?

7 माह के बच्चों के लिए ठोस आहार की बात की जाए, तो बेहतर विकास के लिए उन्हें आयरन, प्रोटीन जैसे पोषक तत्वों वाले आहार के साथ फल, सब्जियां और स्नैक्स भी दिए जा सकते हैं। यहां हम नन्हे शिशु को दिए जाने वाले ठोस आहार की मात्रा के बारे में बता रहे हैं (12) (13) (14)

  • आयरन युक्त अनाज : 3 से 5 चम्मच आयरन युक्त अनाज बच्चे को दिया जा सकता है। इनमें आप गेहूं और सूजी को शामिल कर सकते हैं। बच्चे को खिलाने के लिए इन्हें फॉर्मूला दूध के साथ भी मिक्स कर दिया जा सकता है।
  • फल : बच्चे को फल का गूदा खिलाया जा सकता है। आप गूदे को मिक्स करके दो से तीन चम्मच दिन में दो बार दे सकते हैं। वहीं, केले जैसे मुलायम फले के दो-तीन टुकड़े शिशु को खाने के लिए दे सकते हैं।
  • सब्जियां : बच्चे के आहार में दो से तीन चम्मच सब्जियां भी शामिल करें। सब्जियों में कई तरह के विटामिन्स और मिनरल्स पाए जाते हैं, जो बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करते हैं। जैसे : पालक, चुकंदर व गाजर आदि।
  • प्रोटीन युक्त आहार : 7 माह का बच्चा विकास प्रक्रिया में तेजी से आगे बढ़ रहा होता है। इसलिए उसके आहार में प्रोटीन को शामिल किया जाना जरूरी है। बेहतर होगा कि बच्चे को दिन में दो बार दो चम्मच प्रोटीन युक्त आहार की खुराक दी जाए, जैसे – राजमा, छोले व दाल आदि। बता दें इन चीजों को बच्चे को खिलाने के लिए इन्हें पहले अच्छे से उबाल लें और फिर पीसकर गर्म पानी के साथ पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को चम्मच की सहायता से बच्चे को दिया जा सकता है   (13) (14)
  • स्नैक्स : 7 माह के बच्चे को दिए जाने वाले आहार में स्नैक्स को भी शामिल किया जा सकता है। इनकी सहायता से बच्चे में खाने के प्रति रुचि पनपती है। स्नैक्स की पौष्टिकता बढ़ाने के लिए आप इन्हें घर में ही बना सकते हैं। उनमें कुछ हेल्दी चीजें भी जोड़ सकते हैं, जो स्वाद के साथ बच्चे की सेहत के लिए भी लाभकारी साबित होगी, जैसे – दही, पकी हुई हरी फलियां व पनीर आदि।

7 महीने के बच्चे के लिए कितनी नींद आवश्यक है?

इस उम्र के बच्चों में रातभर सोने की आदत विकसित हो जाती है। सामान्य रूप से 7 माह के बच्चे 24 घंटों में 11 से 16 घंटे की नींद लेने में सक्षम होते हैं (9)

अब आगे लेख में हम 7 माह के बच्चे के खेल और गतिविधियों पर प्रकाश डालेंगे।

7 महीने के बच्चे के लिए खेल और गतिविधियां

उम्र के इस पड़ाव पर बच्चा काफी कुछ सीख चुका होता है। उसे चीजों को पकड़ना, बोलने का प्रयास करना, दूसरों की भावनाओं को समझना आ चुका होता है। ऐसे में उसकी खेल और गतिविधियां भी पहले से काफी बदल जाती हैं (3)

  • ब्लॉक के साथ खेलना : सात माह के बच्चे चीजों को समझने लगते है। उनमें वस्तुओं को समझने और परखने की कला विकसित होने लगती है। इसलिए, वो ब्लॉक के साथ खेलना पसंद करते हैं। यह नन्हे-मुन्ने बच्चों के लिए एक प्रकार की पज्जल गेम होती है (15)
  • पिक्चर गेम : उम्र के इस पड़ाव पर बच्चे में कई तरह के परिवर्तन देखने को मिलते हैं। उनकी उभरती प्रतिभा और बदलावों को देखते हुए उन्हें पिक्चर गेम खेलने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। कारण यह है कि इस दौरान बच्चा चटकीले रंगों और चित्रों के प्रति आकर्षित होता है। बच्चा इस खेल के माध्यम से देखने के कौशल को थोड़ा और विकसित करने की कोशिश करता है (15)
  • कॉलिंग गेम : इस दौरान बच्चों में चीजों को याद रखने की क्षमता बढ़ जाती है। वे चीजों के साथ कुछ खास शब्दों को पहचानने लगते हैं। इन शब्दों में उनका और उनके माता-पिता का नाम भी शामिल होता है। इस कारण वे इन शब्दों को पुकारे जाने पर प्रतिक्रया देते हैं

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